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चैत्र नवरात्र शुरु, मंदिरों में ‘जय माता दी’ की गूंज

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चैत्र नवरात्र पर्व की शुक्रवार से शुरुआत हो गई है। राजधानी के छोटे-बड़े तमाम मंदिरों में लोग सुबह से ही माता शैलपुत्री की पूजा और दर्शन के लिए कतार लगी हुई है। मंदिरों में सुबह से ही ‘जय माता दी’ की गूंज सुनाई दे रही है। मंदिरों को भव्य तरीके से पुष्पों और फूलों से सजाया गया है। जगह-जगह मां दुर्गा के पंडाल लगे हुए हैं। चैत्र नवरात्र के पहले दिन देवी के पहले रूप माता शैलपुत्री की अराधना की जाती है। मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं और नवरात्र पर्व के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है। मार्कण्‍डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा।

मंदिरों और घरों में नवरात्र के पहले दिन मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें हरियाली का प्रतीक जौ बोया गया और मिट्टी के कलश को विधिपूर्वक स्थापित करने के बाद मां की प्रतिमा स्थापित की गई। मां दुर्गा के पूजन से पहले भगवान गणेश का पूजन किया गया और फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ हुआ। इसके बाद मंदिरों में माता के भजन-कीर्तन की प्रक्रिया आरंभ हुई। पंडित के अनुसार, इस बार चैत्र नवरात्र आठ दिन के होंगे। तृतीय नवरात्र तिथि का क्षय हो रहा है। नवरात्र के दौरान पहली पूजा आठ अप्रैल को और समापन 15 अप्रैल को होगा। प्रथम नवरात्र दोपहर एक बजकर सात मिनट तक होगा। दूसरा नवरात्र शनिवार को रात 9 बजकर 24 मिनट तक और तृतीय रविवार तड़के पांच बजकर 58 मिनट तक होगा। इसके बाद चौथा नवरात्र लग जाएगा।

राजधानी दिल्‍ली सहित लखनऊ, पटना, कोलकाता समेत देशभर के मंदिरों में आज सुबह से लोग माता के दर्शन और पूजन के लिए पहुंचे। आज सुबह से ही मंदिरों में ‘जय माता दी’ की गूंज सुनाई दे रही है। जानकारी हो कि नवरात्रों में मां दुर्गा अपने असल रुप में पृथ्‍वी पर ही रहती है। इन नौ दिनों में पूजा कर हर व्यक्ति माता दुर्गा के लिए नौ दिनों का उपवास रखते हैं और मां के नौ स्वरुपों की पूजा-अर्चना करते हैं। जिससे मां की कृपा उन पर हमेशा बनी रहें। नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं।

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