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60 हजार करोड़ के कर्ज में 25 फिसदी किसान हैं डिफॉल्टर

किसा 60 हजार करोड़ के कर्ज में 25 फिसदी किसान हैं डिफॉल्टर

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद अब मध्यप्रदेश में भी किसानों को कर्ज से राहत चाहिए। प्रदेश में किसानों पर करीब 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। जिसमें से 75 फीसदी किसान सरकारी बैंक से कर्ज लेते हैं और वक्त पर लौटा देते हैं ऐसे में 25 फिसदी किसानों को डिफॉल्टर के खाके में डाला गया है। सरकार कर्जदार किसानों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रही है। मध्यप्रदेश में एक करोड़ से भी ज्यादा किसान हैं। जिसमें से 67 फीसदी किसानों पर पांच एकड़ से ज्यादा जमीन हैं।

किसा 60 हजार करोड़ के कर्ज में 25 फिसदी किसान हैं डिफॉल्टर

किसानों को खाद, बीज लेने के लिए बैंकों का सहारा लेना होता है और बैंक किसानों को सहायता के रूप में ऋण देता है। सहकारिता विभाग और वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसानों पर 60 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। 6 लाख किसान डिफॉल्टर की श्रेणी में आ रखे हैं। महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के बाद सरकार ने किसानों की मांगे मान ली है। ऐसे में अब धीरे-धीरे किसानों ने अपना कर्ज बैंकों में जमा करना बंद कर दिया है। यूपी और महाराष्ट्र में किसानों के कर्ज माफी की मांग के बाद हरदा और होशंगाबाद के किसानों ने बैंकों में पैसा जमा कराना बंद कर दिया है। बैंको के अनुसार इन दिनों में जितनी राशि जमा होती है उतनी नहीं हुई है और इसमें करीब 90 प्रतिशत की गिरावट आई है। वही बैंक प्रबंधकों का कहना है कि अगर किसान वक्त पर अपना कर्ज चुकाते हैं तो उन्हें खाद-बीज खरीदने में आसानी होगी। साथ ही किसानों का वक्त पर कर्ज चुकाने से आगामी ऋण आसानी से किसानों को मुहैया कराया जाएगा। वही एक जून से दस जून दस से हड़ताल के वक्त में किसानों ने अपना कर्ज बैंकों में जमा नहीं किया है।

कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री के साथ हु बैठक में बताया गया कि 75 प्रतिशत से ज्यादा किसान वक्त पर अपना कर्ज का भुगतान कर देते हैं। जिसके बाद वह कर्ज लौटाने के बाद दुबारा खाद और बीज के लिए बैंकों से ऋण लेते हैं। अधिकारियों के अनुसार यह प्रक्रिया लगातार चलती ही रहती है।

एसबीआई(भारतीय स्टेट बैंक) के शाखा प्रबंधक का कहना है कि हड़ताल के बाद से किसानों ने अपना कर्ज चुकाना बंद कर दिया है। वही जानकारी के अनुसार 124 करोड़ के कर्ज में किसानों ने 31 मई तक अपना 62 करोड़ रुपए का कर्ज चुका दिया था लेकिन 1 जून से हड़ताल के बाद इसमें भारी कमी देखी गई है। हड़ताल के दौरान किसानों को उम्मीद थी कि सरकार उनके हित में फैसला ले लेगी।

वही किसान नेता का कहना है कि जिनके पास कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त राशि है वह अपने कर्ज को चुका दे ताकी वह बैंकों से मिलने वाला मुनाफा उन्हें मिलता रहे। ऐसा करने से किसान बैंकों की डिफाल्ट श्रेणी में नहीं आएंगे और उन्हें बैंकों से मिलने वाली सुविधाओं का लाभ मिल सके। किसान नेता का कहना है कि कर्ज के लिए किसानों की लड़ाई जारी रहेगी। बैंकों का कहना है कि हड़ताल के दौरान किसानों के कर्ज जमा करने में 90 फीसदी तक की कमी आई है।

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