चंडीगढ़। सतलुज यमुना लिंक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की अपील टाल दी है। दरअसल इस मामले पर पंजाब की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई टालने की अपील की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस अपील को खारिज करने के लिए दिए तर्क में पंजाब की सरकार ने कहा कि राज्य में अभी नई सरकार बनी है जिससे अभी तक लाॅ आॅफिसर का भी चुनाव नहीं हो पाया है, इसलिए इस मामले पर होने वाली सुनवाई जो 12 अप्रैल को होने वाली है उसे टाल हिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की मांग को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई निर्धारित तिथि पर ही होगी। ध्यान देने वाली बात है कि एसवाइएल के मामले पर पंजाब व हरियाणा पिछले काफी समय से लड़ रहे हैं। पंजाब जहां नहर न बनाने की जिद पर है तो हरियाणा किसी भी हाल में नहर बनाने की बात कर रहा है।
क्या है सतलुज-यमुना लिंक मामला
आपको बता दें कि सतलुज-गंगा विवाद पंजाब के पुनर्गठन के साथ ही वर्ष 1966 में शुरु हुआ। इसमें सतलुज, रावी और व्यास नदियों के जलों में बंटवारे के लिए वर्ष 1976 में केंद्र सरकार ने नोटीफिकेशन जारी किया था, पंजाब सरकार ने इस नोटीफिकेशन को अस्वीकार करते हुए इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। वर्ष 1981 में पंजाब सरकार ने अपने इस फैसले को वापस ले लिया था। बाद में अकाली दल ने इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक साल बाद 1982 में नहर की नींव रखी, जिसे वर्ष 1990 में नहर का हिस्सा बनकर तैयार हुआ था, साल 2002 में नहर के बाकी हिस्से को तैयार करने के निर्देश जारी किए गए थे। नहर के इस विवाद को लेकर पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट 2004 पास किया गया, इस फैसले को तत्कालीन यूपीए सरकार ने राष्ट्रपति की राय के लिए भेजा, बाद में राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट ने संविधान बेंच को भेजा दिया। हुड्डा सरकार ने अपील पर सुप्रीम कोर्ट में इसकी फिर से सुनवाई हुई जिसमें पंजाब कैबिनेट ने नहर पर खर्च हरियाणा का पैसा लौटाने का फैसला किया, साथ ही फैसला किया गया कि जिन लोगों से जमीन ली गई उन्हें जमीन वापस लौटाने के लिए कहा गया।