चेन्नई। तमिलनाडु की ‘अम्मा’ के निधन को कुछ ही दिन बीते है लेकिन उनके पार्थिव शरीर को दफनाने के मुद्दे पर सियासत अभी भी जारी है। जयललिता को 6 दिसंबर को चेन्नई के मरीना बीच पर एमजी आर की समाधि के पास दफनाया गया था जिसे लेकर आज भी लोगों के मन में कई तरह के सवाल है और ये विवाद गहराता जा रहा है।अब ऐसी खबर आ रही है कि मंगलवार को जयललिता के रिश्तेदारों ने उनका हिंदू-रीति रिवाज से दोबारा अंतिम संस्कार कराया।
मोक्ष प्राप्ति के लिए दोबारा किया गया अंतिम संस्कार:-
अम्मा के रिश्तेदारों का कहना है कि वो आयंगर ब्राह्मण थी इसलिए उनका हिंदू धर्म के अनुसार संस्कार होना जरुरी है ताकि उन्हें मोक्ष की प्राप्त हो। तमिनलाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री के दाह संस्कार की प्रक्रिया मुख्य पुजारी रंगनाथ लंगर ने की जिसके लिए जया के शव की जगह एक गुड़िया को प्रतीक के रुप में रखा गया। हालांकि संस्कार की कुछ रस्में अभी भी बाकी है जिन्हें आने वाले 5 दिनों में किया जाएगा।
दफनाए जाने पर जयललिता के भाई ने किया विरोध:-
जयललिता जन्म से आयंगर ब्राह्मण थी लेकिन उनके दफनाए जाने को लेकर कई लोगों ने विरोध किया जिसमें उनका सौतेला भाई वरदराजू मुख्य रुप से शामिल था। वरदराजू का कहना है कि अम्मा के बीमारी से निधन तक के सफर में उनके परिवार से कोई भी शरीक नहीं हुआ था। इसके अलावा जितनी भी रस्में थी वो शशिकला ने निभाई और दफनाने का फैसला भी उन्हीं का था।
जानिए शशिकला ने दफनाने का फैसला क्यों लिया?
जयललिता की सहयोगी शशिकला ने उन्हें दफनाने का फैसला लिया और पूरे रीति रिवाज के साथ उन्हें दफन किया गया। पर अब सवाल यह उठता है कि जब जयललिता ब्राह्मण थीं तो उन्हें दफनाया क्यों गया? इसके पीछे बताया जा रहा है कि तमिलनाडु में आयंगर ब्राह्मणों में दाह संस्कार की प्रथा है। तमिलनाडु में द्रविण आंदोलन के चलते कई बड़े नेताओं (पेरियार, अन्नादुरई और एमजी रामचंद्रन ) को दफनाया गया था। हालांकि ये भी तर्क दिया गया कि इन नेताओं की विचारधारा नास्तिक थी, पर इसके विपरीत अम्मा आस्तिक थीं। बड़े नेताओं को दफनाने के बाद उनके समाधि बनाने का प्रचलन है, ऐसे में अम्मा को दफना कर समाधि बनाने की बात की गई जिससे लोग एक यादगार के तौर पर उन्हें याद कर सकें।