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जानिए: आर डी बर्मन के अनसुने पहलूओं बारे में, कैसे बने मशहूर संगीतकार

rd burman जानिए: आर डी बर्मन के अनसुने पहलूओं बारे में, कैसे बने मशहूर संगीतकार

नई दिल्ली:  राहुल देव बर्मन उर्फ आर डी बर्मन हिन्दी फिल्म जगत के एक ऐसे संगीतकार थें जिनके संगीत का जादू आज भी देश में कायम है। उनकी संगीत का जादू लोगों पर ऐसा चला कि मानों लोग उनकी आवाज सुनने को मर मीटने को तैयार हो जाते थे। उनका जन्म 27 जून 1939 को कोलकता में हुआ था। कहा जाता है कि बचपन में जब ये रोते थे तो पंचम सुर की ध्वनि सुनाई देती थी, जिसके चलते इन्हें पंचम कह कर पुकारा जाने लगा। कुछ लोगों के मुताबिक अभिनेता अशोक कुमार ने जब पंचम को छोटी उम्र में रोते हुए सुना तो कहा कि ‘ये पंचम में रोता है’ तब से उन्हें पंचम कहा जाने लगा।

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1961 में चला था उनकी आवाज का जादू

उन्होने संगीतकार के तौर पर पहली बार अपनी आवाज का जादू 1961 में फिल्म ‘छोटे नवाब’ में दिखाया था। जबकि उनकी पहली सफल फिल्म तीसरी मंजिल (1966) माना जाता है।
वर्ष 1994 में इस महान संगीतकार का देहांत हो गया था। आर डी वर्मन ने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को हर तरह का संगीत दिया था। आज के युग के लोग भी उनके संगीत को पसंद करते हैं। आज भी फिल्म उद्योग में उनके संगीत को बखूबी इस्तमाल किया जाता है।

सत्तर के दशक में बनें थे लोकप्रिय संगीतकार

सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए। उन्होंने लता मंगेशकर , आशा भोसले, मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे बड़े कलाकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए। 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपनी संगीत दी जिसमें कटी पतंग काफी सफल रही। यहां से आर डी बर्मन संगीतकार के रूप में काफी सफल हुए। बाद में यादों की बारात, हीरा पन्ना , अनामिका आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म ‘1942 अ लव स्टोरी’ रही। वर्ष 1994 में इस महान संगीतकार का देहांत हो गया।

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