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अखिलेश बनाम शिवपाल, नई नहीं है यह तकरार…

akhilesh yadv with shivapl अखिलेश बनाम शिवपाल, नई नहीं है यह तकरार...

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में चुनावी महाभारत जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है, पार्टियां जनता का अधिक से अधिक विश्वास जीतने का प्रयास कर रही है, पर इन सब के बीच यूपी में सत्तारुढ़ सपा सरकार में सबकुछ सही चल नही रहा है। जिस समय पार्टी को स्वयं को जनता के सामने विश्वसनीय तरीके से प्रस्तुत करने का समय है उस समय मुख्यमंत्री अखिलेश और सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव में मनभेद की खबरें, पार्टी के लिए समस्या का सबब बनी हुई हैं।

मामला इतना ज्यादा गंभीर हो गया है कि शिवपाल ने पार्टी से इस्तीफा देने की भी धमकी दे डाली है। इस कलह के बीच सपा प्रमुख मजधार में फंसे दिख रहे हैं, उन्हे चुनाव को लेकर अखिलेश का बेदाग चेहरा भी दिखना है और शिवपाल का साथ वें इस नाजुक समय में छोड़ सकते नहीं।हालांकि यह भी संभव है कि चूंकि विधानसभा चुनाव सिर पर है ऐसे में मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच बने रहने के लिए सपा सरकार का यह ‘पब्लिसिटी स्टंट’ हो, पर अगर वास्तविकता में चाचा- भतीजे के बीच की यह कलह सही है तो निःसंदेह ऐसे समय में पार्टी के लिए यह बड़ी समस्या पैदा कर सकती है।

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बुधवार सुबह सपा प्रमुख ने सैफई में सपा नेताओं की बैठक बुलाई, हालांकि अखिलेश बैठक में मौजूद नहीं रहे। हालांकि शिवपाल ने यह जरुर कहा कि नेताजी पार्टी में सर्वाेपरि हैं और उनका निर्णय सर्वमान्य है, पर असल में शिवपाल के चेहरे का दर्द छुपाए नहीं छुप रहा था। मुलायम ने जरुर शिवपाल को मनाने की कोशिश की है, पर वो स्वयं दोनो तरफ से फंसे दिख रहे है। एक तो उन्हे अखिलेश को विधानसभा चुनाव में ‘बेहतर सीएम’ के तौर पर पेश करना चाहते है, साथ ही शिवपाल का साथ भी सपा के लिए उतना ही आवश्यक है।

यह पहली बार नहीं है जब शिवपाल और अखिलेश के बीच कलह सामने आई है, इससे पहले भी कई बार दोनो मे मनभेद देखा गया है, अखिलेश यादव के चहेते मुख्य सचिव आलोक रंजन के रिटायरमेंट के बाद दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनाए जाने में शिवपाल का हाथ था। दीपक सिंघल पिछले चार सालों से शिवपाल के सिंचाई विभाग में प्रमुख सचिव के पद पर कार्यरत थे। अखिलेश इसके पक्ष में नहीं थे। वो सिंघल के बैचमेट और कृषि उत्पादन आयुक्त प्रवीर कुमार को मुख्य सचिव बनाना चाहते थे। शुरुआत मे कार्यवाहक मुख्य सचिव का दायित्व भी सौंपा था। इसके साथ ही आपको याद दिला दें कि कौमी एकता दल के विलय को लेकर और मुख्तार अंसारी की एंट्री से अखिलेश नाराज थे। विलय कराने में शिवपाल का हाथ था। मध्यस्थता करने वाले मंत्री से नाराजगी जाहिर करते हुये अखिलेश ने मंत्रि‍मंडल से बलराम यादव को निष्कासित किया था। विलय रद्द होने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार में शिवपाल के कहने पर दोबारा बलराम यादव को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था।

मामला तब भी तूल पकड़ा था जब अमर सिंह को भी पार्टी में दोबारा वापस लाने को लेकर आजम और रामगोपाल के खुले विरोध के चलते अखिलेश असमंजस में थे इस मुद्दे पर शिवपाल पूरी तरह से अमर सिंह के साथ खड़े थे ऐसे ही बेनी प्रसाद वर्मा को सपा में शामिल करने के विषय पर शिवपाल ने अपनी मुहर लगाई थी जिसपर अखिलेश असहमत दिखे थे हालांकि बाद में सपा प्रमुख के मुहर के बाद फैसला लिया गया था। बात बिहार चुनाव की करें तो उस समय भी दोनों के बीच मनभेद की खबरें आई थी, नीतीश और लालू के गठबंधन पर अखिलेश को आपत्ति थी जबकि शिवपाल गठबंधन से सहमत थे। बाद में मुलायम और राम गोपाल की नाराजगी के बाद सपा ने अपने आप को गठबंधन से अलग कर लिया था। बहरहाल तक और आज के समय में बहुत अतंर है, ऐसे नाजुक समय में जितना जल्दी दोनों की बीच का मुद्दा शांत हो जाए पार्टी के लिए यही अच्दा होगा, और अब इसकी जिम्मेदारी पार्टी प्रमुख के स्वयं की है।

 

Akeel New (अकील सिद्दीकी संवाददाता लखनऊ)

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