फतेहपुर। पूरे देश में 2 अक्टूबर गांधी जयंती को बड़ी ही धूम-धाम से मनाई जा रही हैं। वहीं देश के स्वतान्त्रता संग्राम में कभी प्रेरणा देने वाली खादी अब भले ही नए कलेवरों में आकर बड़े नेताओं के लिए सिर्फ राजनीति की खास और मंहगी पोशाक बना कर आभिजात्य वर्ग में शामिल हो गई हो, लेकिन खादी के द्वारा गांधी की परम्परा को जीवित बनाए रखने की जद्दोजहाद में लगे खादी व्यवसाय से जुड़े कामगारों की बेहद दयनीय हालत पर ना गांधी वादियों की नजर है और ना ही बात-बात में गांधी की कसम खाने वाली सरकारों को ही इनकी कोई फिक्र। जीहां हम बात कर रहे हैं। गांधी जयन्ती पर महात्मा गांधी के नाम पर खादी निर्माण में जुटे उन कामगारों की जो आज भी दिहाड़ी मजदूरों से भी कम मजदूरी पर गुजरी हालत में अपना जीवन बसर करने को मजबूर हैं।
गांधी जी ने चरखा चलाया कि देश से गरीबी मिटाई जा सके। लेकिन वर्तमान में सरकार की उपेक्षा के चलते सूत कताई काम में लगी महिलाएं आधुनिक चरखा मशीन पर काम करने के बावजूद अपने परिवार का जीवन किसी तरह कर रही है। मनरेगा से भी कम मजदूरी मिलने के बाद भी गांधी जी के चरखे को चला कर सूत कताई के काम से खुश हैं। 1966 में खादी ग्राम उधोग की स्थापना के बाद खादी कपडे की मांग के अनुसार सुधार होता गया। वैसे चरखा मशीन का स्वरूप भी बदलता गया मगर जिले में लगभग 450 महिलाएं सूत कताई का काम कर रही हैं।