साल 2016 के बीतने में चंद पल बाकी हैं लेकिन माया के लिए ये साल दर्द से कम ना रहा है। इस साल माया के दाहिने हाथ ने उन्हें ऐसा दर्द दिया जिसका गम उनको ता जिन्दगी रहेगा। ये दर्द था बसपा सुप्रीमो के सबसे करीबी स्वामी प्रसाद मौर्या का उनको छोड़ कर बागी बन भाजपा का दामन थामे लेना। तो आईयेगा एक नजर डालते हैं । स्वामी के बसपाई से भाजपाई बनने के सफरनामे पर।
अचानक दर्द आवाज बन कर गूंज गया, गूंज में दर्द कम वक्त का सितम ज्यादा नजर आ रहा था कभी साथ मिलकर जिन हाथों ने आवाज बुलंद करने की कसमें खाई थी वो हाथ अब उन्हीं अपनों से पराये हो चले थे। वाकिया था कभी सूबे और सदन में बसपा की नुमाइंदगी करने वाले नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या के बहन प्रेम से मोह भंग का।
ईट का जबाब पत्थर:-
फिर अचानक ही बसपा नेता ने मीडिया के सामने अपने बसपा प्रेम पर कुठाराघात कर दिया अपनी बहन मायावती का सीना अपने आरोपों से छलनी कर दिया। आरोपी भी कम संगीन ना थे एक के बाद एक टिकट बेचने से लेकर न जाने क्या क्या कह डाला और फिर भी मन नहीं भरा तो अपनी बहन जी के खिलाफ मोर्चा खोल कर बागी बन गये।
भाई का यह रूप को बहन को बहुत नागवार लगा तुरंत ईट का जबाब पत्थर से देने की ठान ली आनन फानन में मीडिया को बुलाया क्योंकि भाई का ये कारनामा 2017 के सपनों के महल को बिखेरने वाला था ।
मैडम माया की बारी:-
तो अब चाल चलने की बारी मैडम माया की थी चाल तो चाल बहन ने पहले भाई को धन्यवाद से धोना शुरू किया और फिर ऐसा धोया मानो रिन के दमदार धुलाई के प्रचार का आगाज हो धुलाई का क्रम बदस्तूर जारी रहा। क्योंकि भाई ने ही बहन की इज्जत का फालूदा जो किया था।
बहन का गुस्सा इतना बढ़ गया कि गुजरे जमाने में कभी भाई का किरदार निभाने वाले सपा सुप्रीमो को भी परिवारवाद पर लपेट लिया और फिर बातों बातों में अपने बागी भाई को सपा का नुमाइंदा भी बता दिया।
अब मैडम माया कैसे ना सपा का नाम लेती क्योंकि सपा के मशहूर बयानवीर आजम चचा तो बागी भाई का हाथ पकड़ के खींच रहे थे। अब मैडम इतनी तो भोली ना थी कि सारी राम कथा ना समझती लिहाजा जहां भाई को दल बदलू और परिवारवाद का समर्थक बताया वहीं गुजरे जमाने के भाई पर इस तूफान का इल्जाम जड़ दिया।
क्या अब भी किला मजबूत है?:-
खैर दिन गुजारा शाम हुई तरह तरह की अफवाहों का बाजार गर्म होता रहा कोई बागी भाई को सपा के मंत्री मंडल विस्तार में कैबिनेट मंत्री बना रहा था तो कोई बड़ी जिम्मेदारी की बात कर रहा था। समाजवाद के चेहरे पर परिवारवाद का मुखौटा पहने सपा मुखिया फूले नहीं समा रहे थे। किसी जमाने में जब बहन ने बगावत कर सपा मुखिया के कपड़े सरे बाजार उतारे थे तो उस दिन का जबाब था ये दिन कि समर का बिगुल बजाने से पहले सेनापति ने अपने ही राजा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
अब तो आने वाली सुनहरी सुबह के इंतजार में रात करवटें बदलते बीत गई पर सुबह तो बागी भाई के तेवर ने रात का हैंग ओवर दो मिनट ने उतार दिया कल जब भ्रष्टाचार का मुद्दा छेड़कर माया से बगावत का बिगुल छेड़ा था तो सपा सुप्रीमो पलकें बिछाये स्वागत की तैयारी में बैठे थे पर ये क्या बागी तो बागी निकला गुण्डाराज बताकर रात की सब उतार दी ।
लेकिन ये क्या कल भष्ट्राचार आज गुण्डाराज अरे ये तो इस बार का भाजपा का नारा है “ना गुण्डाराज ना भ्रष्टाचार अबकी बार भाजपा सरकार” आखिर इशारों इशारों में बागी ने ये संदेश दे ही दिया कि उनका रूख और मन साथ ही मौके की नजाकत तीनों को देखना अब जरूरी है। और अबकी ना सर्वजन हिताय ना समाजवाद अब तो स्वामी लगायेगा केवल ना गुण्डाराज ना भ्रष्टाचार अबकी बार भाजपा सरकार।
हालाँकि माया लगातार स्वामी के जाने के बाद भी अपना किला मजबूत बता रही हैं । लेकिन अब ये तो जनता का जनादेश ही बतायेगा स्वामी का जाना 2017 के विधान सभा चुनाव मे बसपा के लिए कितना हानिकारक होगा तो भाजपा के लिए फायदेमंद लेकिन इस साल बसपा को ये सबसे बड़ा समीकरणात्मक झटका था।
(अजस्रपीयूष)