भगत सिंह
यूं तो भारत की क्रांति के कई चेहरे हैं। लेकिन इस सब के बीच कुछ ऐसे चेहरे हैं जिन्हें देख याद कर खुद ब खुद लोगों में देशभक्ति आ जाती है। कई चेहरो में से एक चेहरे शहीद भगत सिंह का था। भगत सिंह के बारे में बात की जाए तो अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले भगत सिंह का जन्म 1907 में हुआ था। जाट सिख भगतसिंह संधु ने अंग्रेजों के शासन में खलबली मचा कर रखी हुई थी। अंग्रेजों ने इन्हें फांसी पर लटका दिया था। शहीद भगत सिंह ने अपने साथी शहीद राजगुरू और शहीद सुखदेव के साथ मिलकर केंद्रीय संसद में बम फेंक दिया था और वहां से भागने से मना कर दिया था। उन्होंने जानबूझकर अपने आप को बंधी बनाया था। लेकिन अंग्रेजों द्वारा इन तीनों वीरों को फांसी दे दी गई थी।
भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह तथा मां का नाम विद्यावती कौर था। अमृतसर में हुआ जलियांवाला कांड के कारण भगतसिंह पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। शहीद भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़ दिया था। जिसके बाद उन्होंने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया था। जिस वक्त जलियांवाला कांड हुआ था उस वक्त भगत सिंह 12 साल के थे। जिसके बाद वह जलियांवाला बाग पहुंचे थे तब उन्हें यह एहसास हो गया था कि अंग्रेजों का रास्ता बिल्कुल गलत है।
1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए कई सारे उग्र प्रदर्शन किए गए थे। अग्रेजों द्वारा इन प्रदर्शनों में लाठीचार्ज करने पर लाला लाजपत की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद भगत सिंह काफी आहत हुए थे। ऐसे में उन्होंने पुलिस सुपरिटेण्डेंट को मारने की साचिश रची। सोची समझी साजिश के तहत भगत सिंह ने राजगुरू चन्द्रशेखर आजाद, जयगोपाल ने उन्हें गोली मार दी थी। संसद में बम फेंकने और खुद को सरेंडर करन के बाद 7 अक्टूबर 1930 को फैसला सुनाया गया जिसके अनुसार राजगुरू, भगत सिंह और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई। इस फैसले में बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। जिसके बाद 23 मार्च 1931 के दिन तीनों बहादुरों को फांसी दे दी गई थी। 18 दिसंबर 1927 को उन्होंने अपने माता-पिता से अंतिम बार भेंट की थी। अगले ही दिन 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी दे दी थी।