मेरठ के इतिहास काफी पुराना है अगर बात करे इसके इतिहास की तो इसे रावण की ससुराल भी कहा जाता है और क्रांतिकारियों की धरती भी लेकिन आज हम जो आपको बता रहे है वो वेहद ही चोकाने वाली बात है मेरठ कभी मयराष्ट्र राज्य था और इसका राजा मयदानव था जो मंदोधरी के पिता थे ओर मंदोधरी लंकापति रावण की पत्नी थी इस लिए रावण की ससुराल भी कहा जाता है ।
आपको बता दे ये ये प्रचीन विलेश्वर नाथ मंदिर है कहते है इस मंदिर के चारो ओर तालाब हुआ करता था और बीचो बीच मंदिर था लेकिन जैसे जैसे समय सब कुछ बदल गया आपको बता दे कि मंदोधरी मयदानव की पुत्री थी और मेरठ कभी मयदानव का राज्य मयराष्ट्र के नाम से जाना जाता था ओर इसे राज्य के 5 गेट थे जिनमें कुछ आज भी खड़े दिखाई देते है । जिनके नाम जानकर जो बताते है वो कुछ इस प्रकार है (1) बुढ़ाना गेट (2) शाहपीर गेट , (3) सोहराब गेट , (4) लिसाड़ी गेट , (5) शंभुदास गेट ।
सभी ऊँचाई पर है इस लिए इस ऊँचाई वाले छेत्र को कोतवाली इलाका कहा जाता है मंदिर में पूजा करने वाले एक भक्त ने बताया की मंदोधरी इस मंदिर में पूजा करने आती थी और जो शिवलिंग देख रहे है आप इस पर अब तांबे का पात्र चढ़ा दिया गया है ताकि खंडित होने से बचा रहे । ओर इस मंदिर के चारो ओर तालाब हुआ करता था जहां मंदोधरी महा कर सीधे मंदिर में भगवान विलेश्वर नाथ की पूजा करने आती थी इर पौराणिक शिवलिंग है और बताते है मंदोधरी के काल की ही है मन्दिर में सर्दी में भी कोई एक घण्टे बैठ कर पूजा नही कर सकता पसीने आ जाते है बेचैनी होने लगती है कोई शक्ति कहती है कि आपका समय पूरा हुआ उठो ओर जाओ ।
वही मंदिर के पुरहोति ने बताया की यही वो मन्दिर है जहाँ मंदोधरी तालाब में स्नान करके यहाँ मन्दिर में भगवान शिव की आराधना करती थी और यही वर मांगती थी कि उसे बुद्धिमान और बल शाली वर दे तब जाकर उसे वर के रूप में शिव भक्त रावण मिला और इसी कारण मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है मन्दिर के बारे में बताया कि ये सिद्ध पीठ मन्दिर है और यहाँ खुद ही शिवलिंग खुद ही प्रकट हर है जिन्हें शयम्भू इस लिए कहते है कि स्वयं प्रकट होना । बताते है कि यहाँ जो मन से मांगते हैं उनकी इच्छा पूरी होती है ।
आपको एक बात और बता दे कि इस मंदिर से ही जुड़ा हुआ संस्कृत महाविद्यालय भी जहाँ इंटर तक बच्चो को केवल संस्कृत ही सिखाया जाता है जिसकी डिग्री लखनऊ से मिलती है उसके बाद यहां से पढ़े बच्चे बनारस काशी विश्व विद्यालय से आगे की पढ़ाई होती है तब विद्वान पंडित व शंकराचार्य बनते है ।