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श्रीराम के स्वर्ग जाने की इस कहानी के बारे में आपको जरूर जानना चाहिये

sriram chandra ji श्रीराम के स्वर्ग जाने की इस कहानी के बारे में आपको जरूर जानना चाहिये

नई दिल्ली। शरीर नश्वर है इसलिए जिस प्राणी का जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित होती है। संसार में अपने कर्म करने और सुख-दुख को भोगने के बाद आत्मा शरीर को छोड़कर परलोक में प्रस्थान कर जाती है। इसलिए जब साक्षात देवता भी पृथ्वी पर आते हैं तो एक समय के बाद वह स्वर्ग प्रस्थान कर जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और श्रीकृष्ण भी धरती के उद्धार के बाद स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गए थे। अब हम बात करते हैं भगवान श्रीराम के स्वर्गारोहण की।

श्रीराम थे भगवान विष्णु के अवतार

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। श्रीराम को श्रीहरी के दशावतारों में सातवां अवतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने 10 हजार से भी ज्यादा वर्षों तक धरती पर राज किया था। उनकी माता का नाम कौशल्या और पिता का नाम दशरथ था। उनका विवाह जनकपुर की देवी सीता के साथ हुआ था।

पद्म पुराण में है श्रीराम के स्वर्गारोहण का वर्णन

पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार एक दिन एक वृद्ध महात्मा भगवान राम के दरबार में पहुंचे और उनके अकेले में चर्चा करने का निवेदन किया। बुजुर्ग संत के निवेदन पर श्रीराम उनको राजमहल के एक एक कक्ष में लेकर गए। कक्ष के द्वार पर अपने छोटे भाई लक्ष्मण को खड़ा कर गए और कहा कि उन दोनों के बीच की चर्चा को किसी ने भंग करने की कोशिश की तो उसको मृत्युदंड प्राप्त होगा। लक्ष्मण राम आज्ञा का पालन करते हुए द्वार पर पहरा देने लगे। वास्तव में संत विष्णु लोक से भेजे गए साक्षात काल देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह जानकारी देने के लिए भेजा था कि उनका पृथ्वीलोक पर जीवन पूर्ण हो चुका है और अब उनको अपने लोक वापस लौटना है।

ऋषि दुर्वासा का आगमन

एकंत में श्रीराम और संत चर्चा कर रहे थे उसी समय महर्षि दुर्वासा का आगमन हुआ। महर्षि ने पहरा दे रहे लक्ष्मण से श्रीराम से मिलने की इच्छा बताई और कक्ष में अंदर जाने के लिए अनुमति मांगी, लेकिन लक्ष्मण श्रीराम के वचन का पालन कर रहे थे इसलिए उन्होंने महर्षि दुर्वासा को श्रीराम से मिलने के लिए अनुमति नहीं दी। महर्षि दुर्वासा के क्रोध का भाजन देवताओं को भी होना पड़ा था और श्रीराम भी उनके क्रोध से बच नहीं पाए थे। लक्ष्मण के बारम्बार मना करने पर भी महर्षि दुर्वासा अपनी जिद पर अड़े रहे। उन्होंने श्री राम को श्राप देने की चेतावनी दे डाली। अब लक्ष्मण असमंजस में पड़ गए की प्रभू श्रीराम की आज्ञा का पालन करें या उनको महर्षि दुर्वासा के श्राप से बचाएं।

लक्ष्मण ने श्रीराम को बचाने के लिए मृत्युदंड को चुना

महर्षि दुर्वासा के क्रोध और उनके श्राप देने के वचन सुनकर लक्ष्मण भयभीत हो गए और उन्होंने एक कठोर निर्णय ले लिया। उन्होंने सोचा कि यदि महर्षि दुर्वासा को अंदर नहीं जाने दिया तो भाई श्रीराम को श्राप का सामना करना पड़ेगा और श्रीराम की आज्ञा का पालन नहीं करने पर वो मृत्यु दंड के भागी बनेंगे। लक्ष्मण ने मृत्यु दंड को चुना। लक्ष्मण तुरंत श्रीराम के उस कक्ष में चले गए जहां पर वो चर्चा कर रहे थे। लक्ष्मण के वचन तोड़ने पर श्रीराम ने उनको उसी समय देश निकाला दे दिया। लक्ष्मण ने देश छोड़ने के बजाय दुनिया को छोड़ने का निर्णय किया और सरयू के किनारे गए और सरयू नदी में जलसमाधि ले ली और विष्णुलोक को प्रस्थान कर गए।

लक्ष्मण के बिना श्रीराम ने ली सरयू में जलसमाधि

लक्ष्मण के बगैर श्रीराम का जीवन बेहद अधूरा था। उनका राजकाज में भी मन नहीं लग रहा था। ऐसी स्थिति में श्रीराम को भी पृथ्वीलोक में रहना उचित नहीं लगा और वो भी अपने पुत्रों और भतीजों को राजपाठ सौंपकर सरयू किनारे चले गए। श्रीराम सरयू के जल में धीरे-धीरे उतरते चले गए और फिर अंतर्धान हो गए। कुछ समय पश्चात नदी से भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। वास्तव में श्रीराम ने मानवीय रूप का त्याग कर विष्णु के स्वरूप को धारण कर लिया था।

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