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वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: लुढ़की भारत की विश्व रैंकिग, 7 सालों में इतने पत्रकारों ने गंवाई जान

13 23 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: लुढ़की भारत की विश्व रैंकिग, 7 सालों में इतने पत्रकारों ने गंवाई जान

दुनियाभर में आज वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मना रहे हैं। इस मौके पर कई मशहूर हस्तियों ने पत्रकारों को बधाई दी है। वैश्विक संगठन यूनेस्को ने इस मौके पर ट्वीट करते हुए लिखा है- पत्रकारिता कोई अपराध नहीं है। बिना सुरक्षित पत्रकारिता के सुरक्षित सूचना हो नहीं सकती। बिना सूचना के कोई आजादी नहीं होती। आज और रोजाना प्रेस की आजादी के लिए खड़े हों।

 

13 23 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे: लुढ़की भारत की विश्व रैंकिग, 7 सालों में इतने पत्रकारों ने गंवाई जान

 

भारत में भी इस दिन को मनाया जा रहा है। मीडिया वॉचडॉग ‘द हूट’ ने 180 देशों की लिस्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि पत्रकारों की आवाज को दबाया और कुचला जा रहा है और लगातार उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की 180 मजबूत देशों की लिस्ट में भारत को 136वें स्थान पर रखा गया है। जिससे आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में पत्रकारों की स्थिति साल-दर-साल बदतर हो रही है। यहां आपको बता दें कि भारत में पत्रकारों की स्वतंत्रता में कमी आई है। एश साल के शुरूआती चार महीनों में 3 पत्रकारों की हत्या की जी चुका है।

 

 

180 की सूची में भारत तीन पायदान लुढ़ककर136वें नंबर पर आ गया है। पिछले साल भारत 133वें स्थान पर था। इस लिस्ट में पहला नंबर जहां नॉर्वे को दिया गया है, वहीं साउथ कोरिया सबसे नीचे पायदान पर उपस्थित है। दुनियाभर में इस समय 193 पत्रकार जेल में हैं।

 

भारत के पिछले सात सालों का रिकॉर्ड देखें तो, स्थिति काफी शोचनीय है, साल 2012 में 74, 2013 में 73, 2014 में 61, 2015 में 73, 2016 में 48, 2017 में 46 और साल 2018 में अब तक 14 पत्रकारों को काम के दौरान अपनी जान से हाथ गंवाना पड़ा है। यानी सात सालों में 389 पत्रकारों की जान केवल भारत में हुई है।

 

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 21 देशों को काले रंग में दिखाया गया है। जिसका मतलब है कि इन देशों में प्रेस की आजादी बहुत खराब है। वहीं 51 देशों को खराब स्थिति वाले वर्ग में रखा गया है।

 

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे की शुरूआत

हर साल दुनियाभर में 3 मई को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे मनाया जाता है। जाहिर तौर पर किसी भी देश में प्रेस की आज़ादी से ही वहां पर इस बात का अकलन किया जाता है कि वहां पर अभिव्यक्ति की कितनी आज़ादी है।

 

‘अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ निर्णय वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के ‘जन सूचना विभाग’ ने मिलकर किया था। ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ ने भी ‘3 मई’ को ‘अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वातंत्रता’ की घोषणा की थी। यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में 1इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है, जैसे- प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर‍ देना और बंद कर‍ देना आदि।993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था।

 

इस दिन प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है।

 

चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आज़ादी नहीं है। यहां की प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है। इस लिहाज से हमारा भारत उनसे ठीक है। आज मीडिया के किसी भी अंग की बात कर लीजिये, हर जगह दाव-पेंच का असर है। खबर से ज्यादा आज खबर देने वाले का महत्त्व हो चला है। लेख से ज्यादा लेख लिखने वाले का महत्तव हो गया है। पक्षपात होना मीडिया में भी कोई बड़ी बात नहीं है, जो लोग मीडिया से जुड़ते हैं, अधिकांश का उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना न होकर अपनी धाक जमाना ही अधिक होता हैं।

 

एक तरफ प्रेस जनता को सच दिखाती है वहीं दूसरी तरफ यह देश की आवाम को गुमराह करने में भी सक्षम होती है। ऐसा ना हो इसलिए हर देश में प्रेस पर नियंत्रण रखने के लिए कुछ नियम और संगठन होते हैं जो उन्हें उनकी मर्यादा याद दिलाते हैं। भारतीय संसद में 2005 में ‘सूचना का अधिकार कानून’ पास किया गया था। इस क़ानून में सरकारी सूचना के लिए नागरिक के अनुरोध का निश्चित समय के अंदर जवाब देना बहुत जरूरी है। इस क़ानून के प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी नागरिक सार्वजनिक अधिकरण (सरकारी विभाग या राज्या की व्यनवस्था ) से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है और उसे 30 दिन के अंदर इसका जवाब देना होता है। चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आज़ादी नहीं है। यहां की प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है।

 

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