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विश्व साइकिल दिवस भाग-1: बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर तय किया 1200 किलोमीटर लंबा सफर

विश्व साइकिल दिवस भाग-1: बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर तय किया 1200 किलोमीटर लंबा सफर

कोरोना महामारी के चलते पिछले साल जब देशव्यापी लॉकडाउन लगा था, उस दौरान कई ऐसे नजारे सामने आए जिन्होंने समाज में एक मिशाल पेश की। इंसान के हौसले की कुछ ऐसे उदाहरण देखने को मिले जिन्होंने संदेश दिया कि इंसान अगर खुद पर भरोसा कर ले और अपने हौसले को अपनी ताकत बना ले तो दुनिया में कोई भी काम मुश्किल नहीं है। आज विश्व साइकिल दिवस के मौके पर हम आपको कुछ ऐसे ही बुलंद हौसले वालों लोगों की सच्ची कहानियां बतायेंगे, जिनको पढ़कर आपके हौसले बुलंद हो सकते हैं। इन खबरों ने कोरोना लॉकडाउन में सुर्खियां तो बटोरी ही, साथ ही निराशा के माहौल में आशा का संचार किया।

बेटी ने बीमार पिता के लिए 1200 किलोमीटर साइकिल चलाई

बिहार के दरभंगा की रहने वाली ज्योति ने लॉकडाउन में अपने बीमार पिता को गुरुग्राम से दरभंगा के सिंहवाड़ा अपने गांव सिरहुल्ली साइकिल पर बैठकर लेकर आई। दस दिनों में ज्योति ने 1200 किलोमीटर का सफर तय किया। ये सब मुमकिन ज्योति के हौसले के चलते हो पाया। सिरहुल्ली के सरकारी स्कूल में कक्षा आठवीं में पढ़ने वाली ज्योति पिछले साल अपने पिता के पास गुरुग्राम गईं थी। 26 जनवरी 2020 को गुरुग्राम में बैट्री रिक्शा चलाने वाले ज्योति के पिता मोहन की एक दुर्घटना में चोट लग गई थी। जिसके बाद ज्योति और उसके चार भाई बहन अपनी मां के साथ गुरुग्राम गए थे। आर्थिक तंगी के शिकार इस परिवार पर लॉकडाउन आफत बनकर टूट पड़ा। कुछ दिन तो इधर-उधर से मांग कर खाया, लेकिन उसके बाद खाने के लिए भी मुश्किलें पैदा होने लगीं। मकान मालिक भी किराए के लिए धमकाने लगा।

ट्रेन सेवाएं रद्द थी, बिहार जाने का रास्ता लंबा था। ज्योति के परिवार को लगा की अब गुरुग्राम में ही भूखों मरना पड़ेगा। ज्योति अपने पिता से अक्सर कहती थी, कि पापा अगर तुम मर जाओगे तो हम भी मर जायेंगे। फिर एक दिन कोरोना मदद के नाम पर एक हजार रुपए ज्योति के परिवार को मिले। पिता की हालत ऐसी थी कि चलने फिरने में लाचार थे। पिता की हालत देख ज्योति ने साइकिल खरीदने का फैसला किया। पड़ोस में ही रहने वाले एक व्यक्ति से सेकेंड हैंड साइकिल का सौदा किया, 12 सौ रुपए में वह साइकिल देने के लिए तैयार हो गया।

मीडिया से बात करते हुए ज्योति ने बताया कि सात मई को हम लोग रात में चले थे और 15 मई की शाम हम घर पहुंच गए। ज्योति ने बताया कि इस दौरान रास्ते में ट्रक वालों ने बैठाया, जिससे सफर थोड़ा आसान हो गया।

आपको सुनकर शायद दुखा होगा कि, जिस पिता की जान बचाने के लिए ज्योति ने 12 सौ किलोमीटर का सफर साईकिल से तय किया, उसके पिता ने विश्व साइकिल दिवस से तीन दिन पहले आखिरी सांस ली। ज्योति के पिता का निधन उनके पैतृक गांव सिरहुल्ली में हुई। उनके मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है।

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