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छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति

छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है

छठ लोक आस्था के साथ भारत के ग्रामीण परिवेश व परम्परा के साथ प्रकृति की पूजा का पर्व है। ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं। इस पर्व यह पर्व पूरी स्वच्छता के साथ श्रद्धा पूर्वक चार खंडों में मनाया जाता है।आज इस व्रत का दूसरा खंड खरना है। लोक आस्था का ये महा पर्व छठ व्रत नहाय खाय से आरम्भ होता है।

 

छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है
छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है

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नहाय खाय के दिन व्रती खरना की पूजा के प्रसाद की तैयारी में गेहूं धो कर सुखा लेते है।मिट्टी के चूहे बनाये जाते है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना के दिन व्रतधारी दिनभर उपवास करते हैं और शाम में भगवान सूर्य को खीर-पूड़ी, पान-सुपारी और केले का भोग लगाने के बाद खुद खाते हैं।

व्रत की प्रक्रिया में नियम का विशेष महत्व होता है

यह व्रत काफी कठिन होता है।इस पूरी प्रक्रिया में नियम का विशेष महत्व होता है।पूरी पूजा के दौरान किसी भी तरह की आवाज नहीं होनी चाहिए।खासकर जब व्रती प्रसाद ग्रहण कर रही होती है और कोई आवाज हो जाती हो तो खाना वहीं छोड़ना पड़ता है और उसके बाद छठ के खत्म होने पर ही वह मुंह में कुछ डाल सकती है। इससे पहले एक खर यानी तिनका भी मुंह में नहीं डाल सकती इसलिए इसे खरना कहा जाता है।

 

छ पूजा सामग्री छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति
छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति

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खरना के दिन खीर के प्रसाद का खास महत्व है और इसे तैयार करने का तरीका भी अलग है। गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर तैयार किया जाता है। प्रसाद बन जाने के बाद शाम को सूर्य की आराधना कर उन्हें भोग लगाया जाता है और फिर व्रतधारी प्रसाद ग्रहण करती है।

खरना के बाद कठिन निर्जल 36 घंटों का व्रत आरम्भ हो जाता है

प्रसाद ग्रहण करने के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि कहीं से कोई आवाज नहीं आए।ऐसा होने पर खाना छोड़कर उठना पड़ता है। खरना के बाद कठिन निर्जल 36 घंटों का व्रत आरम्भ हो जाता है।कहते है की छठ की पूजा से सारे मनोरथ पूर्ण होते है।छठ पूजा के दौरान व्रती छठ के सुमनोहर गीतों को गा कर अपने व्रत की ओर एक एक कदम बढ़ता है।माना जाता हैं कि लोकगीतों में भारत की वास्तविक छवि की झलक साफ तौर पर दिखती है।

महेश कुमार यादव

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