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क्या राज्यों में कांग्रेस की दुर्दशा की जिम्मेदारी लेंगे राहुल ?

Rahul gandhi क्या राज्यों में कांग्रेस की दुर्दशा की जिम्मेदारी लेंगे राहुल ?

नई दिल्ली। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकानेवाले हैं। तमिलनाडु में तो इतिहास ही बदल गया। जहां हर चुनाव के बाद परिवर्तन की बयार बहती थी। वह थम गई अम्मा को फिर से जीत मिली और इसमें भी नुकसान कांग्रेस को हुआ। वहीं पुडुचेरी को छोड़ दें तो किसी भी राज्य में कांग्रेस को अपनी जमीन तक बचाने का मौका तक नहीं मिला। पूर्वोतर के गेटवे कहे जानेवाले असम में तो कांग्रेस ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि इतने दिनों से जिसके सत्ता की चाभी उनके हाथ में थी उसको भाजपा उनसे छीन लेगी। केरल में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली तो पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस के हालात वाम दल से गठबंधन के बाद भी बेहतर नहीं हो पाए। पश्चिम बंगाल में तो वाम दलों की तरफ से हार का पूरा ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा गया और कहा गया की कांग्रेस के साथ गठबंधन उन्हें भारी पड़ा। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अनुभवी नेता गुरुदास दासगुप्ता ने गुरुवार को कहा, “कांग्रेस के साथ गठजोड़ एक गलत निर्णय था। इससे हमें फायदा नहीं मिला।” दासगुप्ता ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा, “यह गहरे आत्मनिरीक्षण का समय है। मैं समझता हूं कि कांग्रेस से समझौता सही कदम नहीं था। उनके वोट बढ़े, लेकिन हमारे वोट कम हो गए।” वामपंथी पार्टियों की इस बात के लिए अलोचना का सामना करना पड़ा कि जहां वे केरल में कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहे थे, वहीं पश्चिम बंगाल में उनका गठबंधन था।

Rahul gandhi

इस चुनाव के बाद आए परिणामों से स्पष्ट हो गया कि जनता ने इस चुनाव के बाद अपने लिए जनार्दन किसे बनाया है। दो राज्यों में जनता ने वर्तमान सरकारों को फिर से मौका दिया है तो वहीं पूर्वोत्तर के राज्य असम की धरती पर पहली बार कमल खिला। कुल मिलाकर जो फैसला जनता ने सुनाया है वो कांग्रेस के लिए धरती हिलाने वाला रहा। 2014 से कांग्रेस के सिकुड़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो जारी है।

पांचों राज्यों में केरल और असम में कांग्रेस की सरकार थी। असम में भाजपा ने कांग्रेस की 15 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका तो वहीं केरल में लेफ्ट ने कांग्रेस के पंजे को गिरा दिया। देश की महज 7 फीसदी जनता पर कांग्रेस का शासन है। महज 6 राज्यों में कांग्रेस की सरकार है। जनता का ये फैसला कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को बल दे रहा है। वहीं कांग्रेसी नेताओं की सुविधावादी राजनीति को सवालों के घेरे में खडा़ कर रहा है। वहीं 17 मई की तारीख सभी को याद होगी। दिल्ली में एमसीडी के 13 वार्डों पर उपचुनाव के नतीजे आए थे। कांग्रेस को 13 में से 5 सीटों पर विजय मिली थी। दिल्ली में शून्य में पहुंच चुकी कांग्रेस के लिए ये बड़ी जीत थी। लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि उन 5 सीटों की जीत का श्रेय दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने राहुल को दिया था। बाकायदा ट्वीट करके माकन ने राहुल को जीत का श्रेय दिया था। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब इस जीत का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया तो पांच राज्यों में हुई हार के लिए पार्टी की तरफ से जिम्मेदारी कौन लेगा।

सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी को फिर से बचाने में कांग्रेसी नेता खड़े हो जाएंगे। ये कांग्रेस की परंपरा है, उसी परंपरा के तहत एमसीडी की 5 सीटों की जीत का सेहरा राहुल गांधी के सिर पर बांधा जाता है। उसी परंपरा के तहत पांच राज्यों में कांग्रेस की हार के लिए राहुल गांधी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा।

इससे पहले भी कई चुनावों में हुई हार की जिम्मेदारी लाने से राहुल गांधी सीधे तौर पर बचते रहे हैं। पांच राज्यों में दो केरल और असम में कांग्रेस की सरकार थी। चुनाव जीतने की बात तो छोड़िए, कांग्रेस असम और केरल भी नहीं बचा पाई। राहुल गांधी ने जनता के फैसले को स्वीकार करते हुए जीतने वाली पार्टियों को बधाई दी। इसके साथ ही राहुल गांधी ने लिखा है कि हम तब तक कड़ी मेहनत करेंगे जब तक जनता का विश्वास फिर से हासिल नहीं कर लेते हैं। राहुल गांधी जनता के फैसले को मंजूर कर रहे हैं या नहीं। उनके मानने या न मानने से सच्चाई नहीं बदल जाएगी। सवाल इस बात का है कि वो कब कहेंगे कि उनके फैसलों और नीतियों के कारण हार हुई। दरअसल समस्या ये है कि कांग्रेस में गांधी परिवार को हमेशा एक सुरक्षा कवच मिलता रहा है। कांग्रेस में ये मानने को कोई तैयार ही नहीं है कि राहुल गांधी उस काबिल नहीं है कि जनता के मिजाज को परख सकें। बंगाल में लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ना और केरल में उसी लेफ्ट के खिलाफ चुनाव लड़ना। ये सियासत में आत्महत्या करने के बराबर का फैसला कहा जा सकता है। सवाल यह है कि क्या हमेशा की तरह इस बार भी राहुल गांधी को हार की जिम्मेदारी से बचा लिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कांग्रेसी नेता उन्हें जमीनी हकीकत से रूबरू नहीं होने दे रहे हैं।

(गंगेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार)

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