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बिहार की राजनीति गर्म नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा छोड़ रहे एनडीए

7 3 बिहार की राजनीति गर्म नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा छोड़ रहे एनडीए

ऩई दिल्ली। बिहार की राजनीति गर्म होती नजर आ रही है और एक बार फिर एनडीए को कड़ा झटका लग सकता है। बता दे कि ऐसी खबरें आ रही हैं कि बिहार में नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़ नया मोर्चा बनाने वाले है। जिसको लेकर बिहार की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान मुसलमानों से बीजेपी की दूरी का ज़िक्र कर चुके हैं। बिहार में माहौल खराब होने पर नीतीश कह चुके हैं कि वो सांप्रदायिक ताकतों से समझौता नहीं करेंगे।

7 3 बिहार की राजनीति गर्म नीतीश कुमार, राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा छोड़ रहे एनडीए

इस बीच अंबेडकर दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश, रामविलास पासवान और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा एक मंच पर दिख सकते हैं। राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा एनडीए सरकार में मंत्री हैं। ऐसे में ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या भविष्य में नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ेंगे? लेकिन उनका अबकी बार का रास्ता कम से कम आरजेडी के साथ तो नहीं होने वाला है। लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद आरजेडी की कमान संभाल रहे उनके बेटे तेजस्वी यादव ने साफ कहा है कि किसी भी सूरत में नीतीश के लिए उनके बंद दरवाज़े नहीं खुलेंगे।

बता दे कि यह बात भी एकदम साफ है कि नीतीश कुमार बिहार में अपने दम पर सरकार नहीं चला सकते हैं। उनको या तो बीजेपी या आरजेडी की बैशाखी की जरूरत तो जरूर पड़ेगी। ऐसे में क्या नीतीश कुमार किसी तीसरे विकल्प की तलाश कर रहे हैं। क्योकि नीतीश,पासवान और कुशवाहा के साथ मिलने से जो समीकरण बनकर तैयार हुआ हैं उश पर सवाल उठना तो लाजमी हैं बता दे कि गैर-यादव ओबीसी और महादलितों को मिलाकर 38 प्रतिशत का वोटबैंक बनता है।

नीतीश कुमार को राज्य में कुर्मी और कोरी जातियों के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाता है औऱ वो इन लोगों का वोट बैंक साधने में साबित होते हैं लेकिन बता करे अगर कुशवाही की तो कुशवाहा ने कोरी वोटबैंक में सेंध लगा दी थी। लेकिन अगर कुशवाहा साथ आते हैं तो नीतीश कुमार मजबूत होंगे। आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि जब नीतीश कुमार ने दलितों में महादलित की घोषणा की थी तो राम विलास पासवान ने इसका विरोध किया था।

महादलित आयोग की सिफारिशों पर, 22 दलित जातियों में से 18 (धोबी, मुसहर, नट, डोम और अन्य) को महादलित का दर्जा दे दिया गया था। यह नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक था। दलितों की कुल आबादी में इनकी संख्या 31 फीसदी के लगभग थी। इतना ही नहीं चमार, पासी और धोबी को भी इसमें शामिल कर दिया गया था। अब सिर्फ पासवान और दुसाध ही महादलित से बाहर हैं जिन्हें राम विलास पासवान का वोटबैंक कहा जाता है। हालांकि राम विलास पासवान ने कहा है कि वह एनडीए को छोड़ने नहीं जा रहे हैं।

लेकिन राजनीति ऐसे दावों का बहुत ज्यादा महत्व अब रह नहीं गया है। बता दे कि इसी के साथ बीजेपी में भी कई दलित सांसद विरोध करते नजर आ रहे हैं जिसमें दिल्ली से उदित राज के विरोधी स्वर तेज हो रहे है और साथ ही सावित्री बाई फुलें भी काफी जोर शोर से दलितो के साथ हो रहे शोषण को लेकर अपनी बात रख रही हैं अब ऐसे में देखना यें होगा कि क्या बिहार की राजनीति में कोई उथक पुथल होती हैं यानि और अगर होती हैं तो यें भी साफ हैं कि इसका साफ असर 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

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