15 मई से बाबा बद्री विशाल के कपाट खुल चुके हैं। इसके साथ ही विश्व प्रसिद्ध चार धाम यात्रा भी शुरू हो चुकी है।
देवभूमि उत्तराखंड में गंगोत्री,यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम मौजूद हैं। जिन्हें चार धाम के नाम से जाना जाता है। हिन्दु धर्म में चारधाम यात्रा का विशेष महत्व है। जिसके कारण हर साल लाखों लोग चार धाम यात्रा करने चार धाम पहुंचते हैं।
गर्मियों में शुरू होने वाली ये पावन यात्रा चारों धाम के पवित्र कपाट खुलने के साथ शुरू हो चुकी है।
लेकिन क्या आप जानते हैं, बद्रीनाथ में कभी शंख क्यों नहीं बजता है। जी हां आप में ज्यादातर लोगों को ये बात नहीं पता होगा। इसलिए आज हम आपको ये विशेष जानकारी देने जा रहे हैं।
इसके पीछे एक पौराणिक और बेहद ही रहस्यमय कहानी छुपी हुई है, जिसके बारे में शायद आप भी हैरान हो जाएंगे।
उत्तराखंड के चमोली जनपद में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसका निर्माण सातवीं-नौवीं सदी में होने के प्रमाण मिलते हैं।
इसे भारत के सबसे व्यस्त तीर्थस्थानों में से एक माना जाता है, क्योंकि यहां हर साल लाखों लोग भगवान बद्रीनारायण के दर्शन के लिए आते हैं।
इस मंदिर में भगवान बद्रीनारायण की एक मीटर 3.3 फीट लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे भगवान शिव के आवतार माने जाने वाले आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में पास ही स्थित नारद कुंड से निकालकर स्थापित किया था। कहा जाता है कि यह मूर्ति अपने आप धरती पर प्रकट हुई थी।
इस मंदिर में शंख नहीं बजाने के पीछे ऐसी मान्यता है कि एक समय में हिमालय क्षेत्र में दानवों का बड़ा आतंक था।
वो इतना उत्पात मचाते थे कि ऋषि मुनि न तो मंदिर में ही भगवान की पूजा अर्चना तक कर पाते थे और न ही अपने आश्रमों में।यहां तक कि वो उन्हें ही अपना निवाला बना लेते थे।
राक्षसों के इस उत्पात को देखकर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती को मदद के लिए पुकारा, जिसके बाद माता कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से सारे राक्षसों का विनाश कर दिया।
हालांकि आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस मां कुष्मांडा के प्रकोप से बचने के लिए भाग गए।
इसमें से आतापी मंदाकिनी नदी में छुप गया जबकि वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर घुसकर छुप गया।
इसके बाद से ही बद्रीनाथ धाम में शंख बजाना वर्जित हो गया और यह परंपरा आज भी चलती आ रही है।
बदरीनाथ में शंख नहीं बजाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हैं। यह इलाका अधिकांश समय बर्फ से ढका रहता है। शंख से निकली ध्वनि पहाड़ों से टकरा कर प्रतिध्वनि पैदा करती है।
इस वजह बर्फ में दरार पड़ने अथवा बर्फीले तूफान आने की आशंका रहती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि विशेष आवृत्ति वाली ध्वनियां पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसे में पहाड़ी इलाकों में भूक्षरण भी हो सकता है।
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तो देखा आपने इन कारणो की वजह से बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है।