नई दिल्ली। इस बात की जानकारी हर किसी को हैं कि हर साल कार्तिक मास की अमावस्य को दिवाली क्यों मनाई जाती है। इस दिन भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त करके मां सीता के साथ 14 वर्ष का वनवास भोग पर वापस अपने नगर अयोध्या लौटे थे। अपनी खुशी को जाहिर करने के लिए इस दिन लोगों ने घी के दिए जलाए थे और अमावस्य की उस रात को रोश्नी से गुलजार कर दिया था। इस दिन के बाद लोग हर साल दिवाली मनाने लगे और देखते ही देखते दिवाली के साथ लोगों की कई सारी परंपराए जुड़ गई।
यूं तो दिवाली के दिन हर राज्य की अपनी अलग-अलग परम्पराएं होती है। लेकिन देश के सभी उत्तर भारत में जो एक बात दिवाली के दिन सामान है वो है चीनी के खिलौने और खील। इन दोनों का दिवाली के दिन बहुत महत्व है। दिवाली पर पूजन के समय इन दोनों को भगवान गणेश और मां लक्ष्मी के सामने प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है। लेकिन क्या आपको ये पता है की इन्हें दिवाली पर पूजने की परम्परा कब प्रचलन में आई। अगर नहीं पता है तो हम आपको बता देते हैं।
दरअसल हुआ यूं की जब भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त कर वापस अयोध्या लौटे तो नगर वासियों ने मिठाई के तौर पर इन खिलौनों को बाटा था क्योंकि उस दौरान मिठाईयों का इतना प्रचलन नहीं था, इसलिए सब ने चीनी से बने इन खिलौनों से एक दूसरे का मुंह मीठा करवाया था। यहीं नहीं भगवान राम के वापस अयोध्या लौटने की खुशी में पूरे नगर में इन्ही खिलौनों को बटवाया गया था। इसके बाद से ही दिवाली वाले दिन इन खिलौनों का महत्व बढ़ गया और दीपावली पर लोग पूजा के दौरान मीठे खिलौनों को प्रसाद के तौर पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश को अपर्ण करने लगे, जिसके बाद देखते ही देखते ये प्रथा के तौर पर प्रचलित हो गई और दिवाली के दिन इन मीठे खिलौनों से पूजा-अर्चना की जाने लगी।
बता दें कि पहले के समय में मिठाई के रूप में लोग एक दूसरे को यहीं दिया करते थे। लेकिन समय के साथ ये प्रथा कम हो रही है। हालांकि भगवान गणेश और मां लक्ष्मी को पूजन के दौरान इन्ही खिलौनों का भोग आज भी लगाया जाता है, लेकिन दिवाली पर अपने सगे-संब्धियों को इन खिलौनों को देने का दौर लगभग खत्म सा हो गया है।
दिवाली पर खील का महत्व
दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी धन और वैभव की देवी है इसलिए पहले के समय में किसान उन्हें अपनी धान की फसल का कुछ हिस्सा अर्पित करते थे। लेकिन आधुनिक समय के साथ-साथ परम्पराओं में भी बदलाव आ गया है। अब शहरों में रहने वाले लोग तो धान की फसल तैयार करके उसे मां लक्ष्मी को अर्पित नहीं कर सकते। इसलिए इस दिन मां लक्ष्मी को धान से बनी खील को अर्पित करने की परम्परा प्रचलन में आ गई।
बता दें कि खील का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है और धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य धान ही होता है। इसलिए शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी जी को खील का प्रसाद चढ़ाते हैं।