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अंग्रजों ने दिल्ली को क्यों बनाया भारत की राजधानी, दिल्ली को नए सिरे से बसाने में लगे थे 20 साल

delhi 1 अंग्रजों ने दिल्ली को क्यों बनाया भारत की राजधानी, दिल्ली को नए सिरे से बसाने में लगे थे 20 साल

नई दिल्ली। देश के छोटे शहरों के लोगों का सपना होता है कि वो राजधानी दिल्ली में आकर काम करें और लोग करते भी हैं। आज हम आपको उसी राजधानी दिल्ली के बारे में बताने जा रहे हैं। दिल्ली को अंग्रेजों ने आज ही के दिन साल 1911 में भारत की राजधानी के रूप में मान्यता दी, हालांकि इसकी घोषणा  20  साल बाद 13 फरवरी 1931 को की गई थी। आपको बता दें कि अंग्रेज जब भारत पर शासन करते थे तो उन्होंने गर्मियों के दिनों के लिए शिमला को और सर्दियों के दिनों में कोलकाता को भारत की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी। लेकिन जब साल 1905 में बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के विरुद्ध भावना भड़की तो अंग्रेजों ने राजधानी को कलकत्ता से उठाकर कहीं और ले जाना बेहतर समझा।

अंग्रेजो ने कोलकाता से दूर एक ऐसे शहर को राजधानी के रूप में चुना,जिससे देश के सभी हिस्सो पर नजर रखी जा सके और वो था दिलवालों का शहर दिल्ली।  उस समय भारत के लॉर्ड हाीर्डिंग ने शिमला से 1911 में लंदन में सुझाव भेजा की दिल्ली को भारत की राजधानी बनाए जाने की इजाजत दी जाए। इसके पीछे का कारण ये भी था कि पुराने जमाने में दिल्ली कई राजाओं की राजधानी रह चुकी थी और दिल्ली व शिमला की दूरी भी काफी कम थी। अब अंग्रेज वहां से दूर कहीं राजधानी बनाकर शासन चलाना चाहते थे।

delhi 1 अंग्रजों ने दिल्ली को क्यों बनाया भारत की राजधानी, दिल्ली को नए सिरे से बसाने में लगे थे 20 साल

उनकी इस बात को मान लिया गया और उस समय इंग्लैंड के किंग जॉर्ज पंचम ने 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली में नई राजधानी की नींव रख दी। इसके बाद दिल्ली का सही ढंग से निर्माण शुरू हुआ और पुरानी दिल्ली के साथ-साथ नई दिल्ली को बनाने और बसाने में 20 साल लग गए और फिर 13 फरवरी 1931 को विधिवत तौर पर दिल्ली देश की राजधानी बनी और यहां से नए सिरे से राज-काज की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि दिल्ली का नाम तोमर राजा ढिल्लू के नाम पर रखा गया। एक राय ये भी है कि एक अभिशाप को झूठा सिद्ध करने के लिए राजा ढिल्लू ने इस शहर की बुनियाद में गड़ी एक कील को खुदवाने की कोशिश की।

इस घटना के बाद उनके राजपाट का तो अंत हो गया लेकिन मशहूर हुई एक कहावत, किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर हुए मतीहीन, जिससे दिल्ली को उसका नाम मिला। आपको बता दें कि दिल्ली 1450 ईसा पूर्व पांडवों ने जंगल के एक भाग को जलाकर इंद्रप्रस्थ के नाम से बसाया था। बता दें कि जब दिल्ली को भारत की नई राजधानी बनाया गया था उस समय इसकी कुल आबादी 80 हजार थी।

 

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