- भारत खबर
महाभारत में पांच पांडवों के कौशल का अद्भुत परिचय है। बताया जाता है कि द्रोपदी पांच पांडवों की अकेली पत्नी थी। लेकिन इस बात को लेकर बहुत से सवाल यह उठता है कि आखिर द्रोपदी की पांच पांडवों से शादी क्यों हुई थी। और द्रोपती को वर रूप में पांच पांडव क्यों मिले थे।
बताते चलें कि द्रोपदी का बचपन का नाम था नलिनी था और द्रोपती नल और दमयंती की पुत्री थी। इसी के साथ में वह भगवान श्री कृष्ण की प्रिय सखी थी। बताया जाता है कि द्रोपदी भगवान शिव की अराधना में लीन रहती थी। द्रोपदी द्वारा भगवान शिव की कड़ी तपस्या करने के बाद तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान देने के लिए भगवान शिव प्रकट हुए। द्रोपदी ने भगवान शिव से वरदान के रूप में 14 गुणों से युक्त वर मांगा।
द्रोपती ने भगवान शिव से कहा कि मुझे ऐसा वर चाहिए जिसमें 14 गुण हों। गुणों के बारे में बताते हुए द्रोपदी ने कहा कि मुझे ऐसा वर चाहिए जो धर्म के मार्ग पर चले, जिसके हृदय में करुणा हो, जो सभी कार्यों में कौशल हो, व धर्मार्थ कार्यों में निपुण हो, इस प्रकार के 14 गुणों का वर्णन करते हुए द्रोपदी ने भगवान शिव से वरदान में यह वर मांगा। द्रोपदी के विचारों को जानते हुए भगवान शिव ने उन्हें तथास्तु कहकर यह वरदान दिया। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि एक पुरुष में इन सभी गुणों का होना असंभव था। किसी न किसी पुरुष में कोई ना कोई ऐसी कमी थी जो द्रोपदी के योग्य नहीं थी। इसी लिये भगवान शिव के द्वारा दिये गये वरदान के अनुसार द्रोपदी का विवाह पांच पांडवों से हुआ। पांच पांडव यदि एक साथ मिल जाए तो उनमें यह सभी गुण विराजमान हो जाते हैं। और द्रोपती को भी यही इच्छा थी कि उनका वर इन सभी गुणों से संपूर्ण हो।
बताया जाता है कि महर्षि दुर्वासा ने ही माता कुंती को यह वरदान दिया था। जिससे उनके आज वीर पुत्रों का जन्म हुआ। जिन वीर पुत्रों ने बड़े पराक्रम व बड़ी कुशलता के साथ महाभारत के युद्ध में अपना परचम लहराया। बताया जाता है कि महर्षि दुर्वासा 1 दिन गंगा में स्नान करने गए जहां उनका अंग वस्त्र जल में बह गया। इसको देखते ही द्रोपदी ने शीघ्र ही अपनी साड़ी को फाड़ कर उसका टुकड़ा महर्षि दुर्वासा को दिया।
द्रोपदी के इस कार्य से महर्षि दुर्वासा बेहद प्रसन्न हुए और जो द्रोपदी को यह वरदान दिया कि मैं एक समय पर तुम्हें ऐसा वस्तु प्रदान करूंगा जो तुम्हारे आत्म सम्मान की रक्षा करेगा। और महर्षि दुर्वासा का यह वरदान उस समय काम आया जब द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था। भरी सभा में उसकी साड़ी को उतारा जा रहा था। लेकिन महर्षि दुर्वासा के वरदान के कारण द्रोपदी की साड़ी बढ़ती ही चली गई।
बताते चलें कि द्रोपती ने अपने विवाह से पहले अपनी एक अहम शर्त रखी थी।
उन्होंने अपनी शर्त में कहा था कि मैं पांच पांडवों से तभी विवाह करूंगी जब पांच पांडव यह वचन लेंगे कि चाहे वह किसी भी स्त्री से विवाह कर लें लेकिन उससे विवाह करने के पश्चात उसे इंद्रप्रस्थ रानी नहीं बनाएंगे। द्रोपती की शर्त के अनुसार ही उनका विवाह हुआ। पांच पांडवों ने अनेकों स्त्रियों से विवाह किए लेकिन किसी को भी इंद्रप्रस्थ की रानी नहीं बनाया गया।