रविवार को नीतीश ने दिल्ली में आयोजित ‘जनता दल यूनाइटेड’ की बैठक में उन्होंने साफ किया कि जो उनकी पार्टी को नजरअंदाज करेगा, वह राजनीति में खुद इग्नोर हो जाएगा। गौरतलब है कि 2019 का चुनावी तैयारी सुर तेज होने लगे हैं। ऐसे बिहार की राजनीति दिलचस्प मोड़ देकने को मिल रहा।
हो सकता है कि नीतीश को अपने अपमान का डर सता रहा हो
बता दें कि एक साल पहले आरजेडी और कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाले नीतीश कुमार अब एनडीए में अपनी हिस्सेदारी को लेकर सख्त मोड में नजर आ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि नीतीश के पास इतनी ताकत है।जो बीजेपी को अपना शर्तें मानने पर मजबूर कर दे। हो सकता है कि नीतीश को अपने अपमान का डर सता रहा हो। जिस बजह से वह जागरूक हैं।
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आंकड़ों पर गौर किया जाए तो चुनाव-दर चुनाव जेडीयू की स्थिति कमजोर होती दिखाई पड़ती है
पिछले कुछ चुनावों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो चुनाव-दर चुनाव जेडीयू की स्थिति कमजोर होती दिखाई पड़ती है। अपने गठन के बाद से ही जनता दल यूनाइटेड एनडीए यानी बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा रही है।
हालांकि, 2013 में जेडीयू ने 17 साल बाद बीजेपी का दामन छोड़कर कांग्रेस और आरजेडी के साथ राज्य में सरकार बनाई थी। ये गठबंधन ज्यादा वक्त नहीं चल सका और एक बार फिर 2017 में नीतीश कुमार ने घर वापसी करते हुए बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया।
2014 के लोकसभा चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग थी, जेडीयू बीजेपी का साथ छोड़ चुकी थी
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग थी। जेडीयू बीजेपी का साथ छोड़ चुकी थी। बीजेपी ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और 22 पर जीत दर्ज की। जबकि उसके गठबंधन दल रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने 7 सीटों में से 6 पर जीत दर्ज की और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी ने 4 में से 3 सीटों पर परचम लहराया।जबकि अकेले दम पर चुनाव लड़ने वाली जेडीयू को 40 में से महज 2 सीटें जीतीं।