नई दिल्ली। सावन का पूरा महीना शिव जी के लिए और उनकी पूजा के लिए प्रसिध्द है। इस पूरे महीने का हिंदू धर्म में काफी महत्व होता है। इस दौरान लोग कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कावंड़ यात्रा का महत्व क्या है और ये किसने और क्यो शुरू की।
क्या होती हैं कांवड यात्रा
हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवड़िये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है।
कथाएं
कांवड़ को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं जहां कुछ लोग कहते हैं कि कांवड़ का शुरूआत श्रीराम ने की थी तो वहीं, कुछ कहते हैं कि इसकी शुरूआत श्रवण कुमार ने की थी। इसके साथ ही और भी कई सारी मान्यताएं है जो प्रचलित हैं।
कांवड यात्रा पर रखें ध्यान
अगर आप भी सावन के महीने में कांवड़ लेने जा रहे हैं तो आपको मुख्य रुप से कई तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए। अगर आप उन सावधानियों को नहीं बरतते हैं तो आपको काफी परेशानी हो सकती है। सावन के महीने में माना जाता है कि भगवान शिव का जलाभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं। इसलिए शिव भक्त गंगाजल लाकर उससे शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। बात दें कि भक्तों का ये सफर नंगे पांव होता है।
- कांवड़ यात्रा शुरू करते ही कावड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है।
- यात्रा पूरी होने तक उस व्यक्ति को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।
- स्नान करने के बाद ही कांवड को हाथ लगाएं
- कांवड़ियों को ध्यान रखना चाहिए कि वो चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श ना करें।
- कांवड़ लाने में वो वाहन का प्रयोग ना करें।
- इसके साथ ही कांवड को वृक्ष या पौधे के नीचे ना रखें।
इसके साथ ही जो लोग कांवड़ लेने जाते हैं वो पूरे रास्ते भर बोल बम और जय शिव-शंकर का उच्चारण करने हैं तो उनके लिए वो फलदायी होता है। कहा जाता है कि शिव भक्त अगर पूरे आस्था और नियमों को ध्यान में रखकर कांवड लाते हैं तो भगवान शिव उनकी हर इच्छा को पूरा करता है।
कांवड़ यात्रा को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिया सख्त निर्देश