भारत-चीन की हिंसा के बाद गलवान घाटी खबरों मे बन आयी है। जिसको लेकर अब लोग इतिहास के पन्ने पलटने लगे हैं। लोग जानना चाहते है कि, आखिर इस गलवान घाटी में ऐसा क्या है? जो भारत और चीन की लड़ाई वजह 1962 से बनी हुई है।अब बात खुली है तो आगे तक तो जाएगी ही चलिए आपको इस खूबसूरत गलवान घाटी को बसाने वाले अनपढ़ रसूल गलवान के बारे में बताते हैं। जिसकी वजह से आज भारत और चीन के बीच खून बहाया जा रहा है।
गलवान घाटी का नाम लद्दाख के रहने वाले चरवाहे गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था। गुलाम रसूल ने इस पुस्तक के अध्याय “द फाइट ऑफ चाइनीज” में बीसवीं सदी के ब्रिटिश भारत और चीनी साम्राज्य के बीच सीमा के बारे में बताया है।1878 में जन्मा गुलाम सिर्फ 14 साल की उम्र में घर से निकल पड़ा था। उसे नई जगहों को खोजने का जुनून था और इसी जुनून ने उसे अंग्रेजों का पसंदीदा गाइड बना दिया।
लद्दाख वाले इलाके अंग्रेजी हुकूमत को बहुत पसंद नहीं थे, इसलिए अछूते भी रहे। 1899 में उसने लेह से ट्रैकिंग शुरू की थी और लद्दाख के आसपास कई नए इलाकों तक पहुंचा। इसमें गलवान घाटी और गलवान नदी भी शामिल थी। यह एक ऐतिहासिक घटना थी जब किसी नदी का एक चरवाहे के नाम पर रखा गया।
गुलाम रसूल गलवान बहुत पढ़ा-लिखा नहीं था. लेकिन वहां टूरिस्ट के तौर पर काम करते हुए गुलाम ने अंग्रेज टूरिस्टों से बात करना सीख लिया था। वहीं से उसने अपनी कहानी को सर्वेंट ऑफ साहिब्स नाम की किताब में लिखा था। लंबे समय तक वह मशहूर ब्रिटिश एक्सप्लोरर सर फ्रांसिस यंगहसबैंड के साथ रहा।
गलवान का अर्थ
अपनी गलवान पहचान के बारे में गुलाम ने किताब में मां की सुनाई एक कहानी लिखी है। जिसमें बताया गया कि उस समय कश्मीर की वादियों में हिंदू महाराजाओं का राज था। उसके पिता का नाम कर्रा गलवान था। कर्रा का मतलब होता है काला और गलवान का अर्थ है डाकू।
कर्रा अपने कबीले का रखवाला था, वह सिर्फ अमीरों के घरों को लूटता था और पैसा गरीबों में बांट देता था। कुछ समय बाद उसे डोगरा राजा के सिपाहियों ने पकड़ लिया और मौत की सजा दे दी। इसके बाद गलवान कबीले के लोग लेह और बाल्टिस्तान चले गए। कई गलवान चीन के शिंजियांग प्रांत के यारकन्द में जाकर बस गए।
गलवान घाटी पर क्यों हो रहा विवाद?
घाटी की ये जगह अक्साई चिन इलाके में आती है. इसलिए चीन हमेशा यहां आंखें गड़ाये रहता है। साल 1962 से लेकर 1975 तक भारत- चीन के बीच जितने भी संघर्ष हुए उनमें गलवान घाटी ही फोकस था।1975 के बाद अब यह साल 2020 में फिर से सुर्खियों में है।
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जिसको लेकर अब लोग इतिहास को खंगाल रहे हैं।