देश के किसानों का घर सुन्ना, पशु सुन्ने, खेत खलियान सुन्ने, जी हां ये आलाम है देश के अन्नदाता का, अन्नदाता अपनी धान की फसलों को लेकर मंडी में बीते दस दिनों से पहरे पर बैठा है। खरीद के लिए सरकार तारीख पर तारीख बढ़ा रही है। किसान मंडी में अपनी फसल को छोड़कर भी नहीं जा सकता, और पीछे गांव में किसान का घर, खेत और पशु सब सुनसान पड़े हैं जिस कारण अन्नदाता की चिन्ताएं बढ़ी हुई हैं। दिन-रात एक करके किसान अपनी धान की फसल तो किसी तरह से खेत से मंडी तक ले आया, लेकिन मंडी में अन्नदाता को एक बार फिर मायूसी ही हाथ लगी। सरकार द्वारा किया गया किसानों से वादा की किसान की फसल का एक-एक दाना समय पर खरीदा जाएगा खरीद एजेंसियों की खरीद तैयारियों की डल के कारण इस सीजन में सरकार द्वारा किया जा रहा दावा फेल होता नजर आ रहा है।
बता दें कि पानीपत की अनाज मंडी की ये तस्वीरें हैं, जहां पर जिलेभर के किसान अपनी धान की फसल लेकर पिछले काफी दिनों से बैठे हुए हैं। किसान मंडी में लावारिश फसल को छोड़कर भी नहीं जा सकता, क्योंकि मंडी में किसी तरह की सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। भूखा-प्यासा रहकर भीषण गर्मी को सहन कर और बारिश की मार को झेलते हुए अन्नदाता ने धरती माता का सीना चीरकर अपनी धान की फसल को पकाया। फसल को बेचने के लिए बड़े ही अरमानों के साथ किसान मंडी पहुंचा तो उसके सभी अरमान धरे के धरे रह गए।
वहीं एक-एक दिन करके करीब दस दिन बीत गए। लेकिन सरकार की बेरुखी के कारण किसान के धान का एक भी दाना नहीं खरीदा गया। मंडी में भी किसान भूखा-प्यासा रहकर अपनी फसल का पहरा देने को मजबूर है। कईं बुजुर्ग किसान तो यहां तक कह चुके हैं कि क्या इसी दिन के लिए नेताओं को चुनकर सरकार बनाने के लिए भेजा था उन्हें यह अल्फाज अपने मुंह से कहने पड़े की अब यह देश रहने लायक नहीं रह गया। अब तो देश को छोड़कर ही जाना पड़ेगा। देश आजाद नहीं है, अगर देश आजाद होता तो उनकी फसलों की बेकद्री नहीं होती।