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जब देश गूंज उठा इंकलाब के नारों से….

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नई दिल्ली। आज उत्तर भारत में बैसाखी की धूम है। खासकर हरियाणा और पंजाब में। बैसाखी के दिन इन दोनों राज्यों में फसलों को काटा जाता है और इसके बाद ढोल की थाप पर भांगड़ा कर अपनी खुशी का इजहार किया जाता है। बैसाखी यूं तो खुशियों का त्योहार है, लेकिन बैसाखी के ही दिन आज से 99 साल पहले एक ऐसी घटना घटित हुई थी, जिसने सबको को झकझौर के रख दिया था। क्या आप जानते है उस घटना के बारे में, अगर नहीं तो चलिए हम बता देतें हैं।

खुशियों के त्योहार बैसाखी के अवसर पर आज के दिन 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग कांड हुआ था, जिसने हर किसी को अंदर से तोड़ दिया था। इस घटना के बाद देशभर में बड़े पैमाने पर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था। इसी जलियावाल बाग ने हमे भगत सिंह जैसा सपूत दिया था, जिसने देश की आजादी के लिए मात्र 23 साल की उम्र में फांसी पर लटक कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

अब जब शहीद भगत सिंह का नाम यहां जुड़ चुका है तो चलिए हम आपकों यहां ये भी बता देते हैं कि आजादी की लड़ाई के लिए भगत सिंह के दिल में जलियावाल बाग कांड के बाद ही क्यों आजादी के शोले जागे। दरअसल उनके पिता, दादा और चाचा ने आजाद भारत का सपना देखते हुए अंग्रेजों के खिलाफ पहले ही मुहीम छेड़ी हुई थी इसलिए उनके मन में देश प्रेम बचपन से ही विदमान था। फिर एक दिन जलियावाला बाग कांड हुआ, जिसमें सैकड़ो निर्दोश लोग मारे गए। जब भगत सिंह को ये बात पता चली तो उन्होंने वहां की मिट्ठी को एक बोतल में डाला और देश को आजादी दिलाने की कसम खाई इसलिए जलियावाला बाग को आजादी की ज्वाला भड़काने का प्रेरक भी माना जाता है। 06 7 जब देश गूंज उठा इंकलाब के नारों से....

क्या हुआ था उस दिन  

जलियावाला बाग अपने भीतर कई दर्द समेटे हुए है। दरअसल बैसाखी  के शुभ अवसर पर लोग अपनी फसलों को काटने के बाद रौलेट एक्ट के विरोध में जलियावाला बाग में शांतिपूर्वक अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए एकत्रित हुए थे। लेकिन ये सभा अंग्रेजों को नागवार गुजरी और जनरल डायर नाम के एक अंग्रेज अफसर ने अपनी पुलिस के साथ इस बाग पर चढ़ाई कर दी। शांतिपूर्वक चल रही इस सभा में जनरल डायर ने लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलवा दी, जिसमें हजारों मासूम लोग मारे गए।05 5 जब देश गूंज उठा इंकलाब के नारों से....सरकारी आकड़ों के मुताबिक इस घटना में 484 लोग शहीद हुए थे, जबकि जलियावाला बाग में 388 लोगों के नामों की सूची है। वहीं ब्रिटिश शासन के अभिलेख में इस घटना में 379 लोगों के शहीद और 200 लोगों के घायल होने की बात स्वीकार की गई है, जिसमें 337 पुरुष,41 नाबालिग लड़के और एक छह सप्ताह का बच्चा था। हालांकि अगर इन आकड़ों से ऊपर उठकर देखा जाए तो इस घटना में 2000 से ज्यादा लोग मारे गए और इन इनमें कई महिलाएं भी शामिल थी।

क्यों हो रहा था रौलेट एक्ट का विरोध

रॉलेट ऐक्ट मार्च 1919 में भारत की अंग्रेजी हुकुमत ने भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के के लिए बनाया था। ये कानून सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली समिति की शिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार अंग्रेजी सरकार को ये अधिकार प्राप्त हो गया था कि वे किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद कर सकती थी। इस क़ानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था।

इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। ‍गाँधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। इस एक्ट का ही विरोध करने के लिए बड़े पैमाने पर जलियावाला बाग में लोग एकत्रित हुए थे। लोग शांतिपूर्वक इस एक्ट का विरोध कर रहे थे, लेकिन अंग्रेजी हुकुमत को लगा कि उनके खिलाफ एक बार फिर भारत में 1857 को विद्रोह की तैयारी हो रही है।

इसी उद्देश्य के चलते जनरल डायर ने मासूम लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात कर दी, जिसमें हजारों लोग मारे गए। हालांकि कि लोगों की कुर्बानी बेकार नहीं गई क्योंकि इस घटना के बाद देशभर में अंग्रेजी हुकुमत को उखाड़ फेंकने के लिए लोग एकजूट होने लगे अंतत: भारत को 1947 में आजादी मिल गई।

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