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दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला के अयोध्या आगमन के पीछे की क्या है असली वजह जानें जरूर

दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला के अयोध्या आगमन के पीछे की क्या है असली वजह जानें जरूर

दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला किम जुंग सुक अपने चार दिनों के भारत दौरे पर हैं।वह आज 6 नवंबर को अयोध्या में उत्तर प्रदेश सरकार के ‘दीपोत्सव’ समारोह की मुख्य अतिथि हैं। जुंग सुक के साथ दक्षिण कोरिया का एक शिष्टमंडल भी है।गौरतलब है कि सुक का अयोध्या दौरा एक सामान्य यात्रा तक सीमित नहीं है यह दौरा दक्षिण कोरिया और भारत के संबंध को दर्शाता है।मालूम हो कि दक्षिण कोरिया और भारत के सदियों पुराने संबंध हैं।

 

दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला के अयोध्या आगमन के पीछे की क्या है असली वजह जानें  जरूर
दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला के अयोध्या आगमन के पीछे की क्या है असली वजह जानें जरूर

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बता दें कि वर्ष 2000 से 2001 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, उस वक्त पता चला कि अयोध्या की एक राजकुमारी दक्षिण कोरिया में रानी बनी थीं। जो करीब 2000 साल पहले वहां की वंश परंपरा पर राज कर चुकी हैं।मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अयोध्या की उस राजकुमारी का नाम दक्षिण कोरिया में ह्यो ह्वांग-ओक रखा गया।कहा जाता है कि अयोध्या की रानी का असली नाम सूरीरत्ना था।

गौरतलब है कि 21वीं सदी में अयोध्या के साथ दक्षिण कोरिया के संबंधों की चर्चा ने ज्यादा काफी जोर पकड़ा। किम्हे के मेयर साल 2000 में अपने एक शिष्टमंडल के साथ अयोध्या आए। इस शिष्टमंडल ने दावा किया कि कारक वंश की रानी हू ह्वांग-ओक (जिन्हें ह्यो ह्वांग-ओक) के नाम से भी जाना जाता है, की शादी वहां के शासक किम सूरो से हुई थी। शिष्टमंडल का कहना है कि हू ह्वांग-ओक का जन्म अयोध्या में हुआ था।

मेयर के नेतृत्व वाले शिष्टमंडल ने अयोध्या को किम्हे शहर की तरह विकसित करने का प्रस्ताव रखा। शिष्टमंडल ने सरयू तट पर रानी ह्यो ह्वांग-ओक का एक स्मारक बनाने की योजना बनाई।बता दें कि मार्च 2001 में अयोध्या और किम्हे के मेयर ने स्मारक का निर्माण करने के लिए एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद राजकुमारी सूरीरत्ना (कोरियाई रानी ह्यो ह्वांग-ओक) के सम्मान में स्मारक पर काम शुरू हो गया।भारत दौरे पर आईं दक्षिण कोरिया की प्रथम महिला इस स्मारक का दौरा करेंगी।

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कोरियाई विशेषज्ञों के अनुसार अयोध्या की राजकुमारी सूरीरत्ना अपनी पिता की इच्छा का पालन करते हुए 16 साल की उम्र में दक्षिण कोरिया पहुंचीं। सूरीरत्ना के पिता को अपनी पुत्री को दक्षिण कोरिया भेजने का दैवीय सपना आया था। सूरीरत्ना अयोध्या के राजकुमार और अपने भाई के साथ दक्षिण कोरिया की यात्रा पर निकलीं। कोरियाई शोधकर्ताओं का कहना है कि यह घटना 48 एडी की है।

कोरिया में सूरीरत्ना की आगवानी किंग किम-सूरो ने की थी

कोरियाई शोधकर्ताओं के अनुसार सूरीरत्ना जब दक्षिण कोरिया पहुंचीं तो उनकी अगवानी किंग किम-सूरो ने की। इसके बाद दोनों शादी के बंधन में बंध गए और कारक वंश परंपरा की नीव रखी। राजा सूरीरत्ना से बहुत प्रेम करते थे। किंग सूरो की राजकुमारी सूरीरत्ना से जिस जगह पहली मुलाकात हुई थी वहां पर राजकुमारी का एक मंदिर का निर्माण कराया गया। प्राचीन कोरियाई ग्रंथों में भी सूरीरत्ना की कहानी का जिक्र है।कहा जाता है कि सूरीरत्ना 189 साल तक जीवित रहीं। सूरीरत्ना के निधन के बाद किम्हे में एक मकबरा बनाया गया। इस मकबरे के सामने पत्थर का बना हुआ एक पैगोडा है। दक्षिण कोरिया के लोगों का मानना हैं कि इस पैगोडा में वह पत्थर है जिसे सूरीरत्ना अपनी नाव में लेकर दक्षिण कोरिया पहुंची थी।

महेश कुमार यादव

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