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जाने शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ही क्यों की जाती है नाग देवता की पूजा, क्या है नागपंचमी का महत्व

corona vaccine 1 जाने शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ही क्यों की जाती है नाग देवता की पूजा, क्या है नागपंचमी का महत्व

नागपंचमी का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। ये पर्व पंचमी की तिथि को मनाया जाता है

नई दिल्ली। नागपंचमी का पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। ये पर्व पंचमी की तिथि को मनाया जाता है इसलिए इस दिन नागो की पूजा करने का विधान रखा गया है। नागपंचमी के दिन वासुकी नाग, तक्षक नाग शेषनाग सांपों की पूजा की जाती है। इस दिन जिन लोगों को नाग देवता के दर्शन नहीं होते वो अपने घर में नाग की आकृति बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि नागपंचमी के दिन नाग की पूजा करने से नाग देवता की कृप्या बनी रहती है, और नाग देवता घर परिवार की सुरक्षा करते हैं इस बार नागपंचमी का त्योहार इस साल 25 जुलाई को मनाया जाएगा।

कालसर्प दोष के लिए नागपंचमी का दिन है सर्वोत्तम

बता दें कि कहा जाता है कि जब कुंडली में सारे ग्रह राहु-केतु के बीच में आ जाते हैं तो जातक के कालसर्प दोष लग जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि जिसकी कुंडली में कालसर्प दोष बैठ जाता है। उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे दोष वाले लोगों को पारिवारिक जीवन से लेकर कारोबार और नौकरी से जुड़ी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, और कई कष्टो का से जूझना पड़ता है। कालसर्प को दोष को दूर करने के लिए नागपंचमी का दिन बहुत ही उत्तम माना जाता है।

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नागपंचमी के दिन क्यों नहीं करते धरती की खुदाई

वहीं पुराणों में कहा गया है कि नाग पाताल लोक के स्वामी है। सापों को क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। सांप चूहों को खाकर किसानों की खेती की रक्षा करते हैं। साथ ही नाग भूमि में बांबी बना कर रहते हैं इसलिए नागपंचमी के दिन भूलकर भी भूमि की खुदाई नहीं करनी चाहिए।

नागपंचमी
नागपंचमी

किन चीजों से की जाती है नागों की पूजा

नागपंचमी के दिन नागों की पूजा में पांच तरह की चीजों का उपयोग किया जाता हैं। धान,धान का लावा(जिन्हें खील भी कहा जाता है) दूर्वा, गाय का गोबर और दूध यो पांच चीजें हैं जिनसे नागदेवता की पूजा करते हैं।

क्यों मनाया जाता है नागपंचमी का त्योहार

जब अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया गया तो नाग ने माता की आज्ञा नहीं मानी जिसके कारण उसे श्राप मिला कि राजा जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाए। श्राप के डर से नाग घबरा गए और ब्रह्माजी की शरण में गए। ब्रह्माजी ने नागों के इस श्राप से बचने के लिए बताया कि जब नागवंश में महात्मा जरत्कारू के पुत्र आस्तिक उत्पन्न होगें। वही आप सभी की रक्षा करेंगे। ब्रह्माजी ने नागो को रक्षा के लिए यह उपाय पंचमी तिथि को बताया था। आस्तिक मुनि ने सावन की पंचमी वाले दिन ही नागों को यज्ञ में जलने से रक्षा की थी। और इनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की थी। उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा। तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी।

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