आज कांग्रेस ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के लिए उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू को नोटिस सौंपा है। कुछ महीनों पहले सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर कई मुद्दों पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए सीजेआई मिश्रा पर गंभीर आरोप लगाए थे। बाद में कांग्रेस ने इन आरोपों को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला और चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने की घोषणा की।
महाभियोग काफी एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। आइए जानते हैं- क्या होता ह महीभियोग और क्या है इसकी प्रक्रिया?
क्या हा महाभियोग
महाभियोग प्रक्रिया संसद में विशेष पदों पर विराजमान व्यक्तियों के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है। इन पदों में इन पदों में राष्ट्रपति, सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश, भारत के निर्वाचन आयुक्त आदि हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 56 के अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रयुक्त की जा सकती है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए महाभियाग लाने का प्रावधान है।
क्या है इसकी प्रक्रिया
किसी जज को पद से हटाने के लिए लाए जा रहे महाभियोग प्रस्ताव को निचले सदन में 100 सांसदों और ऊपरी सदन राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों की सहमति की आवश्यकता होती है। एक और बात नोटिस को लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में स्पीकर स्वीकर या खारिज कर सकते हैं।
जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का होता है गठन
अगर महाभियोग का प्रस्ताव मंजूर किया जाता है तो उसके बाद आरोपों की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन होता है जिसमें मुख्य न्यायाधीश अथवा सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, किसी राज्य के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
जज को भी मिलता है बचाव का मौका
जांच पूरी होने के बाद रिपोर्ट पीठासीन अधिकारी को सौंप दी जाती है, और इसके बाद आरोपी जज को अपने बचाव का मौका दिया जाता है।
दोषी सिद्ध हुआ तो होती है आगे की कार्यवाही
अगर यह समिति अपनी जांच में न्यायाधीश को दोषी पाती है तो सदन में महाभियोग लगाने की कार्यवाही शुरू होती है। प्रस्ताव को पारित होने के लिए दोनों सदनों में उसका पारित होना अनिवार्य है। पारित होने के लिए मिले वोटों का सदन की कुल सदस्य संख्या के आधे से ज़्यादा होना, और मौजूद सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई से ज़्यादा होना अनिवार्य है। आरोपों की जांच के दौरान पदाधिकारी को भी उपस्थित होकर या किसी कानूनी विशेषज्ञ के माध्यम से अपनी सफाई देने का अधिकार होगा। हालांकि इस बारे में अंतिम फैसला संसद को करना होता है। दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी करते हैं।
महाभियोग प्रक्रिया का सामना करने वाले न्यायधीश
- जस्टिस सौमित्र सेन, कोलकाता हाईकोर्ट
- जस्टिस पी वी दिनकरन, सिक्किम हाईकोर्ट
- जस्टिस जे बी परदीवाला, गुजरात हाईकोर्ट
- जस्टिस वी रामास्वामी, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट