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मिर्जापुर के बाद बिच्छू का खेल में दिव्येंदु शर्मा ने लगाया तड़का, दर्शकों के दिलों-दिमाग में छाए डायलॉग

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बॉलीवुड। अब एक के बाद एक बेवसीरीज लोगों के दिलों दिमाग पर छाने लगी है। खासकर मिर्जापुर जैसी बेवसीरीज ने टीवी स्क्रीन पर धमाल मचा दिया था। दर्शकों ने इस बेवसीरीज को खूब पसंद किया था। इस बेवसीरीज में सबसे पसंदीदा किरदार मुन्ना भईया का था। मुन्ना भईया के डायलॉग लोगों के दिलों दिमाग में छा गए थे। अब ऐसी ही एक और बेवसीरीज रीलीज हुई है, जिसमें मुन्ना भईया उर्फ दिव्येंदु शर्मा पूरी कहानी को बनारसी अंदाज में अपने कंधों पर लेकर बढ़ रहे हैं। इस बेवसीरीज में लेखक ने जर जोरू जमीन का फार्मूला फिट किया है। जी5 और आल्टबालाजी पर रिलीज हुई नौ कड़ियों की यह वेबसीरीज अमित खान के पल्प नॉवेल बिच्छू का खेल पर आधारित है। हिंदी वेब एंटरटेनमेंट की दुनिया में यह लुगदी साहित्य की दस्तक है।

बिच्छू के खेल बेवसीरीज में क्या दिव्येंदु शर्मा का रोल-

बता दें कि बिच्छू का खेल उसी की नई कड़ी है। जिसमें बनारसी पिता-पुत्र, बाबू श्रीवास्तव (मुकुल चड्ढा) और अखिल श्रीवास्तव (दिव्येंदु शर्मा) मुकेश चौबे (राजेश शर्मा) की मिठाई की दुकान पर काम करते हैं। तेजी से घूमते घटनाक्रम में बाबू पुलिस थाने में फंदा लगा कर आत्महत्या कर लेता है। तब अखिल कसम खाता है कि वह बाबू को यह कदम उठाने पर मजबूर करने वालों को उनके अंजाम तक पहुंचाएगा। बाबू की मौत के पीछे बनारस को बीजिंग बनाने का ठेका उठाए लोगों का हाथ है, वे खतरनाक हैं। कहानी एक मर्डर से शुरू होती है। हत्या के पीछे के षड्यंत्र का ताना-बाना यहां बिछा है। अखिल इसे छिन्न-भिन्न करता है। यहां अखिल की लवस्टोरी भी है और बाबू समेत कुछ लोगों के अवैध संबंधों की कथाएं भी। कथा-पटकथा की कमियों की भरपाई काफी हद तक क्षितिज रॉय के संवादों ने की है। दिव्येंदु और पुलिस इंस्पेक्टर निकुंज तिवारी बने सैयद जीशान कादरी ने संवादों के साथ डिलेवरी में न्याय किया है। कुछ संवाद रोचक ढंग से देश-समाज और समय का हाल बयान करते हैं। जैसेः -ये वो देश है जहां पब्लिक कनफर्म टिकट वाले को भी सीट से उठा देती है।

कहानी का अंदाज आपबीती वाला-

बिच्छू का खेल में निर्देशक ने हल्की कॉमिक टोन बनाए रखी और यहां क्राइम केंद्र में होने के बावजूद धड़ल्ले से हत्याएं नहीं हो रहीं। जो आम तौर पर नॉर्थ-केंद्रित वेबसीरीजों में दिखता है। यहां बनारस की टाउन प्लानिंग से जुड़े मुन्ना सिंह की हत्या का रहस्य खोलने की कोशिश का बड़ा घेरा है। साथ ही अखिल द्वारा पिता की आत्महत्या का तमाशा बनाने वालों से बदला लेने और खुलेआम हत्या करके खुद को कानून से बरी करा लेने का ड्रामा भी है। कहानी का अंदाज आपबीती वाला है। जिसमें हीरो-लेखक का नरेशन बीच-बीच में आकर कहानी को अपने ढंग से मोड़ता है। हालांकि इससे ड्रामे का रोमांच बीच-बीच में बाधित होता है।

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