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देश को स्वतंत्र कराने में बुनकरों की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता : अकरम अंसारी

बुनकरो की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता
लखनऊ। देश को स्वतंत्र कराने में बुनकरों की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता। भारत में किसानों के बाद सबसे बड़ी आबादी बुनकर समाज की है और पेशा बुनकरी है लेकिन जहां देश का बुनकर सरकारी अदूरदर्शिता भ्रष्टाचार के चलते अपनी गरिमा मान सम्मान और कारोबार में पिछड़ता ही जा रहा है वहीं दूसरी तरफ  पूंजीपतियों और धनाढ्य वर्ग के उत्पीड़न शोषण का शिकार है। यह बातें मोमिन अन्सार सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मो. अकरम अन्सारी ने कही।
उन्होंने कहा कि जैसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने देश से कपास का निर्यात कर तैयार कपड़े का आयात कर बुनकरों की आर्थिक सामाजिक स्थिति को तोड़ना अंग्रेजों की नीति का हिस्सा था क्योंकि वो जानते थे कि जब तक देश के किसान और बुनकरों को नहीं तोड़ेंगे तब तक भारत पर राज नहीं कर सकते।  वैसे ही आज की सरकारें भी देश के कपास को विदेशों को निर्यात कर बुनकरों को तोड़ने की नीतियों पर चल रहीं हैं।
अकरम अंसारी ने कहा कि भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था उसकी वजह भारत का बुनकर तबका भी था जिसके हाथ का करघे से बुना हुआ कपड़ा था जो विदेशांे को तैयार करके भेजा जाता था और विदेशी मुद्रा भारत आती थी लेकिन मौजूदा समय में यही बुनकर की अनदेखी की गई हाथकरघे से बने कपड़े पर टैक्स लगा दिया गया।
      उन्होंने कहा कि हथकरघा की कला में हाथ के अंगूठे का विशेष योगदान होता था इसलिए अंग्रेजो ने बुनकरों की इस कला को खत्म करने के उद्देश्य से बुनकरों के अंगूठे तक कटवा दिए मगर इतना करने पर भी  बुनकरों के हौसले कम नहीं हुए। मोहम्मद अकरम ने कहा कि प्रदेश में 80 से 90 प्रतिशत हथकरघा उद्योग बंद हो चुके है, इस कारण गरीब बुनकर मजदूरी करने व रिक्शा चलाकर अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे है, किसानों की तरह सैकड़ों बुनकर प्रतिवर्ष आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण आत्म हत्या करने पर मजबूर है।  केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा बुनकरों को किसी भी प्रकार की कोई सुविधाएं नहीं मिल पा रही है जिस कारण हथकरघा उद्योग केवल सरकारी कागजों तक ही सीमित होकर रह गया है।

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