देश भारत खबर विशेष यूपी राज्य

पर्यावरण के साथ जल संरक्षण है बेहद जरूरी, सरकार को उठाने होंगे गंभीर कदम

world paryavaran day पर्यावरण के साथ जल संरक्षण है बेहद जरूरी, सरकार को उठाने होंगे गंभीर कदम
  • ललित गर्ग

जल प्रदूषण एवं पीने लायक जल की घटती मात्रा दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बन चुका है। पर्यावरण से जुड़ी इस तरह की समस्याओं एवं खतरों को लेकर वैश्विक स्तर पर चिन्ता तो जाहिर की जाती है, मगर अब तक इस दिशा में कोई खास पहल नहीं हो सकी है।
पर्यावरण से जुड़े खतरों के प्रति सचेत करने, पर्यावरण की रक्षा करने एवं उसे बचाने के उद्देश्य से हर वर्ष 5 जून 2019 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

विभिन्न सरकारों एवं इंसानों ने पर्यावरण एवं प्रकृति को बचाने के लिये कई उपाय कर रखे हैं, पर कुछ खतरे ऐसे हैं जिनसे बचने की संभावना जटिल बताई जा रही है। ऐसे ही खतरे जल प्रदूषण एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा को लेकर खड़े हैं। धरती पर जीवन के लिये जल सबसे जरूरी वस्तु है। यहाँ किसी भी प्रकार के जीवन और उसके अस्तित्व को यह संभव बनाता है। जीव मंडल में पारिस्थितिकी संतुलन को यह बनाये रखता है। पीने, नहाने, ऊर्जा उत्पादन, फसलों की सिंचाई, सीवेज के निपटान, उत्पादन प्रक्रिया आदि बहुत उद्देश्यों को पूरा करने के लिये स्वच्छ जल बहुत जरूरी है।

जल प्रदूषण एवं पीने लायक जल की घटती मात्रा दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बन चुका है। पर्यावरण से जुड़ी इस तरह की समस्याओं एवं खतरों को लेकर वैश्विक स्तर पर चिन्ता तो जाहिर की जाती है, मगर अब तक इस दिशा में कोई खास पहल नहीं हो सकी है। परिणाम है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण तेज औद्योगिकीकरण और अनियोजित शहरीकरण बढ़ रहा है जो बड़े और छोटे पानी के स्रोतों में ढेर सारा कचरा छोड़ रहे हैं जो अंततः पानी की गुणवत्ता को गिरा रहा है।

जल में ऐसे प्रदूषकों के सीधे और लगातार मिलने से पानी में उपलब्ध खतरनाक सूक्ष्म जीवों को मारने की क्षमता वाले ओजोन के घटने के कारण जल की स्व-शुद्धिकरण क्षमता घट रही है। इससे जल की रासायनिक, भौतिक और जैविक विशेषताएं बिगड़ रही हैं जो पूरे विश्व में सभी पेड़-पौधों, मानव और जानवरों के लिये बहुत खतरनाक है।

पशु और पौधों की बहुत सारी महत्वपूर्ण प्रजातियाँ जल प्रदूषकों के कारण खत्म हो चुकी हैं। ये एक वैश्विक समस्या है जो विकसित और विकासशील दोनों देशों को प्रभावित कर रही हैं। खनन, कृषि, मछली पालन, स्टॉकब्रिडींग, विभिन्न उद्योग, शहरी मानव क्रियाएँ, शहरीकरण, निर्माण उद्योगों की बढ़ती संख्या, घरेलू सीवेज आदि के कारण बड़े स्तर पर जल एवं जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं।

पूरे विश्व के लिये जल प्रदूषण एक बड़ा पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दा है। यह अपने चरम बिंदु पर पहुँच चुका है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी), नागपुर ने चेताया है कि नदी जल का 70 प्रतिशत बड़े स्तर पर प्रदूषित हो गया है। भारत की मुख्य नदी व्यवस्था जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, यमुना आदि बड़े पैमाने पर प्रभावित हो चुकी हैं। भारत में मुख्य नदी खासतौर से गंगा भारतीय संस्कृति और विरासत से अत्यधिक गहरे रूप में जुड़ी हुई है। आमतौर पर लोग जल्दी सुबह नहाते हैं और किसी भी व्रत या उत्सव में गंगा जल को देवी-देवताओं को अर्पण करते हैं। पूजा को संपन्न करने के मिथक में गंगा में पूजा विधि से जुड़ी सभी सामग्री एवं अस्थि विसर्जन कर देते हैं।

इसी गंगा नदी एवं अन्य नदियों में उद्योगों से चीनी मिल, भट्टी, ग्लिस्रिन, टिन, पेंट, साबुन, कताई, रेयान, सिल्क, सूत आदि जो जहरीले कचरे बड़ी मात्रा में मिलते हैं। 1984 में गंगा के जल प्रदूषण को रोकने के लिये गंगा एक्शन प्लान को शुरु करने के लिये सरकार द्वारा एक केन्द्रिय गंगा प्राधिकरण की स्थापना की गयी थी। इस योजना के अनुसार हरिद्वार से हूगली तक बड़े पैमाने पर 27 शहरों में प्रदूषण फैला रही लगभग 120 फैक्टरियों को चिन्हित किया गया था। लखनऊ के पास गोमती नदी में लगभग 19.84 मिलियन गैलन कचरा लुगदी, कागज, भट्टी, चीनी, कताई, कपड़ा, सीमेंट, भारी रसायन, पेंट और वार्निश आदि की फैक्टरियों से गिरता है। पिछले 4 दशकों में ये स्थिति और भी भयावह हो चुकी है।

दुनिया की बहुत सारी नदियों की तरह भारतीय नदियों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है, जबकि इन नदियों को हमारी संस्कृति में हमेशा पवित्र जगह दी जाती रही है। भारत के लोग इन नदियों से मुंह नहीं फेर सकते क्योंकि वे उनकी जीवनरेखाएं हैं और भारत का भविष्य कई रूपों में इन्हीं नदियों की सेहत से जुड़ा हुआ है। भारत में जल प्रदूषण सबसे गंभीर पर्यावरण संबंधी खतरों में से एक बनकर उभरा है। इसके सबसे बड़े स्रोत शहरी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट हैं जो बिना शोधित किए हुए नदियों में प्रवाहित किए जा रहे हैं।

सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद शहरों में उत्पन्न कुल अपशिष्ट जल का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही शोधित किया जा रहा है और बाकी ऐसे ही नदियों, तालाबों एवं महासागरों में प्रवाहित किया जा रहा है। तीव्र औद्योगीकरण ने भी जल प्रदूषण की समस्या को निश्चित रूप से खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया है। साथ ही, कृषि में प्रयुक्त कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों ने भी जल प्रदूषण की समस्या को बढ़ाने में अपना योगदान दिया है। जल प्रदूषण की समस्या से मानव तो बुरी तरह प्रभावित होते ही हैं, जलीय जीव जन्तु, जलीय पादप तथा पशु पक्षी भी प्रभावित होते हैं। खास तौर पर कुछ समुद्री हिस्सों एवं नदियों में तो जल प्रदूषण की वजह से जलीय जीवन समाप्तप्राय हो चुका है।

आज मुंबई जैसा शहर एक दिन में 2100 मिलियन लीटर गंदा पानी पैदा करता है। फिलहाल अधिकांश पानी समुद्र में जाता है। लेकिन अगर उसे उपचारित करके माइक्रो-इरिगेशन के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो उससे हजारों हेक्टेयर जमीन पर खेती हो सकती है। 200 भारतीय शहरों का गंदा पानी मिलाकर 36 अरब लीटर होता है, जिससे 30 से 90 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती है। अगर किसानों को जैविक खेती की तरफ बढ़ने के लिए मदद की जाए, तो खेती से होने वाले प्रदूषण को रोका जा सकता है।

अगर किसानों को अच्छी उपज चाहिए और वे खेती से कमाना चाहते हैं, तो खेत को कैमिकल्स की नहीं, जैविक तत्वों की जरूरत है। मिट्टी तभी स्वस्थ रहेगी, जब हम पेड़ों और पशुओं से मिलने वाली खाद को उसमें डाल दें। यह न सिर्फ नदी के लिए अच्छा है, बल्कि मिट्टी, किसान की आमदनी और लोगों की सेहत के लिए भी बेहतर है। समय आ गया है कि हम हर चीज को अपनी खुशहाली के लिए इस्तेमाल करना सीख लें। जरूरी तकनीकें पहले से मौजूद हैं।

Related posts

जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का तैयार हो गया मसौदा, दो से ज्यादा बच्चे तो….

Aditya Mishra

एक्टिंग कौशल का इस्तेमाल कर रही है हनीप्रीत, 30 रुपए की थाली से हो रहा है गुजारा

Pradeep sharma

SP Candidate List: लोकसभा चुनाव के लिए सपा की एक ओर लिस्ट जारी, इस सीट से बदला उम्मीदवार

Rahul