नई दिल्ली। शास्त्रों में भगवान राम के विवाह की जो तिथि मिलती है उसके अनुसार मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवन राम का विवाह राजा जनक नंदिनी सीता के साथ हुआ था। इस तिथि को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। उनके इस विवाह का श्रीरामचरितमानस में महाकवि तुलसीदासजी ने बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। रामचरित मानस में कुछ ऐसी घटनाओं का जिक्र मिलता है जिससे पता चलता है कि विवाह से पहले ही देवी सीता ने भगवान राम को अपना पति मान लिया था। छोटी सी मुलाकात में ही दोनों एक दूसरे को पसंद कर चुके थे। रामचरित मानस के एक दोहे में यह बात स्पष्ट होती है।
‘मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।
एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली।
इस दोहे से स्पष्ट होता है कि राम जी के दर्शन पाने के बाद सीता माता गौरी की पूजा करते हुए मन ही मन प्रार्थना करती है कि उन्हें पति रुप में भगवान राम प्राप्त हों। देवी सीता की इस मनोकामना को समझते हुए गौरी उन्हें आशीर्वाद देती हैं कि भगवान राम ही उन्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। और धनुष भंग करके सीता के राम बन गए। श्रीराम ने सदा मर्यादा का मान रखा इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। इनहीं की भांति माता सीता ने समस्त संसार के सामने पवित्रता का उदाहरण दिया था।
पालन करके पुरुषोत्तम का पद पाया, उसी तरह माता सीता ने सारे संसार के समक्ष पतिव्रता स्त्री होने का सर्वोपरि उदाहरण प्रस्तुत किया। इस दिन राम -सीता की पूजा अराधना से सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है।