देवउठनी एकादशीःनवंबर माह की 19 तारीख यानी कि कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। गौर करें कि एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस पर्व को के पीछे मान्यता है कि इस दिन ही भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। उनके जागने के बाद ही सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से शुरू होते हैं।आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में सोने के लिए चले जाते हैं जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं। बता दें कि इस समय में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता।कहा जाता है कि इन चार महीनों में पूरी सृष्टि का संचालन भगवान शंकर करते हैं।
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पुराणों और शासत्रों के मुताबिक देवउठनी एकादशी के दिन सभी देवी-देवता पृथ्वी पर एक साथ आकर देव दीवाली मनाते हैं। चूंकि दिवाली के समय भगवान विष्णु निद्रा में लीन होते हैं। यही कारण है कि लक्ष्मी की पूजा उनके बिना ही की जाती है। कहा जाता है कि देवउठनी ग्यारस को भगवान विष्णु के उठने के बाद सभी देव भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरतीकरते हैं। गौरतलब है कि इस दिन गन्ने के मंडप में तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह किया जाता है। कहा जाता है कितुलसी का पौधा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसी कारण हर भोग को विष्णु तुलसी पत्र के साथ ही स्वीकार करते हैं।
विष्णु ने भगवान शालिग्राम के रूप में तुलसी माता से विवाह रचाया था
भगवान विष्णु ने भगवान शालिग्राम के रूप में तुलसी माता से विवाह रचाया था।देवोत्थान एकादशी के दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान क्षीरसागर में चार माह शयन के बाद जागते हैं।इस दिन सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए। एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए।
देवउठनी एकादशी की पूजा विधि
रात में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाते हैं। रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करते हैं।इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए। ऐसा करते हुए वाक्य दोहराना चाहिए- ”उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास”। माना जाता है कि एक बार भगवान विष्णु से लक्ष्मीजी ने आग्रह के भाव में कहा, हे भगवान! आप दिन-रात जागते हैं, लेकिन एक बार सोते हैं तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं और उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए।
वर्ष के चार मास वर्षा ऋतु में शयन करते हैं विष्णु
लक्ष्मी जी ने विष्णु से कहा कि आपके नियम से विश्राम करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा।माना जाता है कि विष्णुजी को लक्ष्मीजी की सही नहीं लगी। विष्णु ने कहा कि तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है।उन्होंने कहा कि तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता। इसलिए आज से मैं हर वर्ष के चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा।मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। विष्णु ने कहा कि मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे (लक्ष्मी) समेत निवास करूंगा।
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मुर नामक दैत्य का आतंक
पौराणिक कथा के मुताबिक मुर नामक दैत्य ने एक बार बहुत आतंक मचाया। उसी दौरान देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया। देवताओं की आवज सुनकर बिष्णु ने उसके साथ युद्ध किया। लेकिन विष्णु जी को नींद आने लगी और वह युद्ध अंजाम तक नहीं पहुंचा। विष्णुजी शयन के लिये चले गये जिसका फायदा मुर ने उठाना चाहा लेकिन भगवान विष्णु से ही एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने मुर के साथ युद्ध करना आरंभ कर दिया। इस युद्ध में मुर मूर्छित हो गया जिसके बाद उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। वही तिथि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि थी। कहा जाता है कि भगवान विष्णु से एकादशी ने वरदान मांगा था कि जो भी एकादशी का व्रत करेगा उसका कल्याण होगा। मोक्ष की प्राप्ति होगी।