लखनऊ। उत्तर प्रदेश का बरेली शहर सुरमा,मांझा,बांस तथा जरी-जरदोजी के लिए जाना जाता है। यहां पर यह सभी काम परम्परागत तौर पर होता आया है। एक दौरा तो ऐसा भी था जब पतंग देश के चाहे जिस हिस्से में उड़े,लेकिन उसको उड़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाली डोर में बरेली के मांझे का ही इस्तेमाल होता था,लेकिन अब इस मांझे की चमक धीमी पड़ चुकी है। कुछ इसी तरह की बदहाल स्थिति सुरमा,बांस तथा जरी-जरदोजी कारोबार की भी है।
इस काम से जुड़े लोगों की बेहद कम आमदनी व अस्थायी रोजगार पर कोरोना की मार पड़ी तो हालत और चिन्ताजनक डरावने हो गये।
मांझे के कारोबार की हालत तो बीते कई साल से खराब है, इसके पीछे का कारण चाइनीज मांझे को बताया जा रहा है। लेकिन मौजूदा समय में इन सभी करोबार की हालत कोरोना वायरस की वजह से खराब है। जिससे लाखों लोग प्रभावित हुये हैं। अकेले जरी-जरदोजी कारोबार से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से करीब 8 लाख कारीगज जुड़े हुये हैं,जिसमें 3 लाख के करीब महिलायें है,इसी तहर सुरमा कारोबार से 15 से 20 हजार,मांझे से 50 हजार व बांस-बेंत के कारोबार से करीब 20 हजार लोगों का घर चलता है। लेकिन मौजूदा समय में कोरोना महामारी ने इन पर आर्थिक सितम ढाया है।
असंगठित क्षेत्र के इन कामगारों का कोई नहीं पुरसाहाल
असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की आय संगठित क्षेत्र की तुलना में न केवल कम रहती है, बल्कि कई बार तो यह जीवन स्तर के न्यूनतम निर्वाह के लायक भी नहीं होती। ऐसे में सुरमा,मांझा,बांस तथा जरी- जरदोजी के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को सरकार से बड़ी आस है। कुछ इसी तहर का हाल रिक्शा चालक,आटो चालक व मैकेनिक का काम करने वाले लोगों का भी है,इस तरह का काम करने वाले लोगों की संख्या भी लाखों में हैं,इन्हें भी किसी तरह की मदद नहीं मिलती है। ऐसे में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे सामाजिक संगठन तथा सरकारी मदद की दरकार है।
क्या कहते हैं जानकार
सेन्ट्रल यूपी चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष किशोर कतरू का कहना है कि जब महामारी का दौर होता है,तो समस्या संगठित तथा असंगठित दोनों क्षेत्रों के लिए होती है। कोरोना काल में उद्योगो के लिए सबसे बड़ी समस्या श्रमिक तथा कच्चे माल की है। उन्होंने बताया कि श्रमिक तथा कच्चा माल न मिलने की वजह से उत्पादन नहीं हो पाता। इसके अलावा उत्पादन हो भी जाये तो बाजार तथा उपभोक्ता नहीं मिलते। ऐसे में उद्योगों को सरकार की तरफ से मिलने वाली मदद काफी नहीं होती है। उन्होंने साफ कहा कि जब श्रृखंला टूटती है तो काम तथा आर्थिक दोनों स्थिति पर असर पड़ता है।
उन्होंने बताया कि कोरोना काल में सबसे ज्यादा मार असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर पड़ी है,उन्होंने बताया कि आटो चलाने वाले लोगों से लेकर दुकानों पर मैकेनिक का काम करने वाले तथा इसी तरह का अन्य काम करने वाले लोगों के सामने आजीविका का संकट गहरा गया है। ज्यादा तर समय कोरोना काल में इन लोगों का काम बंद ही रहा। उन्होंने कहा कमोवेश इसी तरह के हालत लगभग सभी जगह पर हैं। इनकी मदद तभी होगी जब सरकार व सामाजिक संगठन आगे आयेंगे।