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वीर बाल दिवस: प्रकाश पर्व पर पीएम मोदी का ऐलान, 26 दिसंबर को देश में मनाया जाएगा वीर बाल दिवस

वीर बाल दिवस वीर बाल दिवस: प्रकाश पर्व पर पीएम मोदी का ऐलान, 26 दिसंबर को देश में मनाया जाएगा वीर बाल दिवस

वीर बाल दिवस || प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को लगातार मिल रहे जनसमर्थन के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि वह लगातार अपनी ऐतिहासिक भूलों को सुधारने के अथक प्रयास कर रही हैं। वहीं भारत के एक बहुत बड़े वर्ग का मानना है कि इतिहास लिखने में गड़बड़ी की गई है उनका आरोप है कि देश के जनमानस ने काफी चालाकी के साथ अत्याचार यों के प्रति गौरव गाथा का भाव पैदा किया है जबकि देश के नाम अपना सब कुछ निछावर करने वाले अनगिनत वीर पुत्रों को गुमनामी के अंधेरे में कहीं धकेल दिया है कुछ वर्ग के लोगों का मानना है कि कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक अन्याय गुरु गोविंद सिंह और उनके चार पुत्रों के साथ भी हुआ है जिनकी मुगल काल के दौरान बेदर्दी से हत्या कर दी गई थी। 

पीएम मोदी ने किया बड़ा ऐलान

वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह और उनके चार पुत्रों को श्रद्धांजलि देते हुए। हर वर्ष 26 दिसंबर के दिन ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाए जाने का ऐलान किया है। 

पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि “माता गुजरी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और 4 साहिबजादों की वीरता और आदर्श लाखों लोगों को शक्ति देते हैं। वे अन्याय के आगे कभी नहीं झुके। उन्होंने एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जो समावेशी और सामंजस्यपूर्ण हो। अधिक से अधिक लोगों को इनके बारे में जानना समय की मांग है।”

इस्लामिक अत्याचार की क्या है भयावह दास्तां

वर्ष 1704 दिसंबर का महीना 20 दिसंबर का दिन कड़कती ठंड के बीच अचानक से मुगल सेना का आनंदपुर साहिब के लिए पर हमला कर देना हालांकि इस दौरान गुरु गोविंद सिंह उन्हें सबक सिखाना चाहते थे लेकिन उनके दाल में शामिल से खोलें खतरे को भांपते हुए वहां से निकलना ही बेहतर समझा। और गुरु गोविंद सिंह ने भी पूरे स्थित जत्थे की बात मानते हुए परिवार के साथ आनंदपुर जिले से बाहर निकल पड़े। वही उस वक्त सरसा नदी का जल बहाव काफी तेज जिसकी वजह से नदी पार करते वक्त गुरु गोविंद सिंह अपने परिवार से बिछड़ गए। उस वक्त गुरु गोविंद के साथ उनके दो साहबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह मौजूद थे और वह उनके साथ चमकौर पहुंच गए। वहीं परिवार के बिछड़े अन्य लोग घर वापस चले गए। कहा जाता है कि माता गुजरी के पास मुगल सेना के सिक्कों को देख कर गंगू लालच में आ जाता है और उसे इनाम पाने की इतनी चाहत थी कि उसने कोतवाल को माता गुजरी की सूचना दे दी। 

माता गुजरी अपने दो छोटे पोतों के साथ गिरफ्तार हो गई। गिरफ्तारी के बाद उन्हें सरहद के नाम वजीर खान के सामने पेश किया गया। वजीर ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को जबरन इस्लाम स्वीकार करने को कहा लेकिन दोनों ने धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया। तब नवाब ने 26 दिसंबर 1704 को दोनों कुछ दिन दाग दीवार में चुनवा दिया वही माता गुजरी को सरहिंद के किले से धकेल दिया जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। 

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