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वट सावित्री व्रत का ये हैं विधान, इस मंत्र के जाप से मिलेगा मनचाहा फल

वट सावित्री व्रत का ये हैं विधान, इस मंत्र के जाप से मिलेगा मनचाहा फल

लखनऊः यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। इस व्रत को करने का विधान त्रयोदशी से पूर्णिमा अथवा अमावस्या तक है। यह व्रत रखने वाली स्त्रियों का सुहाग अचल रहता है।

वट सावित्री व्रत विधान

इस व्रत में प्रातः काल स्नान के बाद बाँस की टोकरी में सप्त धान भरकर ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थापित करके, दूसरी टोकरी में सत्यवान व सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके वट वृक्ष के नीचे रखकर पूजा करनी चाहिए। तदोपरान्त बड़ की जड़ में पानी देना चाहिए। जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, गुड़, फूल तथा धूप-दीप से वट वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। जल से वट वृक्ष को सींच कर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए।

वट सावित्री पूजा वट सावित्री व्रत का ये हैं विधान, इस मंत्र के जाप से मिलेगा मनचाहा फल
वट सावित्री पूजा

भीगे हुए चनों का वायना निकालकर, उस पर रुपये रखकर सास के चरण स्पर्श कर देना चाहिए। वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिंदूर तथा कुमकुम से सुवासिनी स्त्री के पूजन का विधान है। व्रत के बाद फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करनी चाहिए। यह व्रत स्त्रियों द्वारा अखण्ड सौभाग्यवती रहने की कामना से किया जाता है। इस व्रत में प्रायः सामूहिक पूजा  का विधान भी है मंत्र निम्न है-

अवैधव्यम च सौभाग्यम देहि त्वं मम सुव्रते।

पुत्रान पौत्राश सौख्यमं च ग्रहणधैर्य नमोस्तुते।

वट सावित्री व्रत एवं वट वृक्ष का महत्व

इस संसार में अनेक प्रकार के वृक्ष हैं, उनमें से बरगद के वृक्ष यानि वट वृक्ष का विशेष महत्व है। वट वृक्ष दीर्घायु और अमरत्व का प्रतीक है क्योंकि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो का निवास होता है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकूल फलों की प्राप्ति होती है। सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा यही समझकर करतीं हैं कि मेरे पति भी जीवन पर्यन्त वट की तरह विशाल और दीर्घायु बने रहें।

सावित्री का महत्व

सावित्री के पति सत्यवान वेद के ज्ञाता थे और अल्पायु भी। नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री घोर तपस्या कर यमराज के द्वार से भी अपने पति को वापस लेकर आ गई। अतः इस दिन यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है।

वट सावित्री कथा वट सावित्री व्रत का ये हैं विधान, इस मंत्र के जाप से मिलेगा मनचाहा फल

विशेष: वटसावित्री व्रत के पालन में दो परंपराएं प्रचलित हैं। स्कन्द पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण के अनुसार यह व्रत जेष्ठ पूर्णिमा और निर्णयामृत आदि के अनुसार अमावस्या को किया जाता है। दोनों परंपराओं में यह पूर्व चतुर्दशी विद्दा अमावस या पूर्णिमा के दिन ही किया जाता है। शास्त्रों के वचनानुसार इस वर्ष जेष्ठ अमावस वाला वट सावित्री व्रत चतुर्दशी विद्दा अमावस वाले दिन 9 जून 2021,बुधवार को भी किया जा सकता है क्योंकि अमावस इस दिन सूर्यास्त से पहले त्रिमुहूर्त व्यापिनी है।

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा

बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली

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