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टीकाकरण की इस रफ्तार से कैसे लगेगी कोरोना पर लगाम

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लखनऊ। कोरोना के कहर को थामने के लिए लोगों में एटीबॉडी होना बेहद जरूरी है। ऐसे में लोगों का टीकाकरण कराना बेहद अहम है। कोरोना की दूसरी लहर ने जान-माल को किस तरह से प्रभावित किया यह छिपा नहीं है। इसके बाद भी टीकाकरण की गति यूपी में रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है।

टीकाकरण की रफ्तार सुस्त होने के पीछे कई कारण हैं। जिनका समाधान किया जाना बेहद जरूरी है। आंकड़ों के अनुसार अगर टीकाकरण की यही रफ्तार रही तो कोरोना का खतरा लंबे समय तक बना रहेगा।

यह है जिलों में टीकाकरण की रफ्तार

प्रदेश के विभिन्न जिलों में वहां की औसत आबादी के हिसाब से आकलन किया जाए तो टीकाकरण का ग्राफ काफी कम है। अभी तक करीब 7.5 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण हो पाया है। जिलेवार स्थिति देखी जाए तो लखनऊ में 16.01 फ़ीसदी, गौतम बुध नगर में 28.34 फ़ीसदी, कानपुर में 10.19 फीसदी, मेरठ में 13.26 फ़ीसदी हुआ है। महोबा में 10.75 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण हुआ है।

इसी तरह गाजियाबाद, गोरखपुर, वाराणसी, मथुरा 10 फ़ीसदी के करीब हैं। इसी तरह अलीगढ़, आजमगढ़, मुरादाबाद, चित्रकूट, श्रावस्ती, ललितपुर, कासगंज, औरैया, कौशांबी, संत कबीर नगर, सोनभद्र, संभल में टीकाकरण का 5 से 6 फ़ीसदी के बीच चल रहा है। कन्नौज, एटा में चार फीसदी आबादी तक टीकाकरण का ग्राफ नहीं पहुंच पाया है।

टीकाकरण में आ रहीं ये बाधाएं

प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में टीकाकरण में लगी टीम ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को अलग-अलग इलाके में अलग-अलग तरह की समस्या आने की जानकारी दी है। निगरानी में लगे अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण इलाके में टीकाकरण को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। कहीं वर्ग विशेष के लोग टीकाकरण कराने से परहेज कर रहे हैं तो कहीं अशिक्षा की वजह से समस्या आ रही है।

ग्रामीण इलाके में युवाओं में टीकाकरण को लेकर जोश है, लेकिन 45 साल से अधिक उम्र वाले अल्प आय समूह के लोग टीकाकरण के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। खासतौर से खेती किसानी करने वाले लोगों में भी भ्रम बना हुआ है, जबकि चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि टीकाकरण से ना तो किसी तरह की कमजोरी आती है और ना ही जान का खतरा है।

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