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तीन-चार दिन की बर्फ़बारी की वजह से उत्तराखंड की वादियां बदली जन्नत में

देहरादून 1 तीन-चार दिन की बर्फ़बारी की वजह से उत्तराखंड की वादियां बदली जन्नत में

देहरादून. तीन-चार दिन की बर्फ़बारी की वजह से उत्तराखंड की वादियां जन्नत सरीखी दिख रही हैं लेकिन ये कुछ ऐसा है, जैसे ‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा’. सिस्टम की खामियों के चलते बर्फ़बारी यहां दूसरा सबसे बड़ा डिज़ास्टर बन गई है. सड़कें बंद हैं, बिजली-पानी की सुविधाएं चरमरा गई हैं, पर्यटक जहां-तहां फंस गए हैं और सैकडों गांवों का संपर्क कट गया है. उत्तराखंड में पांच जनवरी से तीन-चार दिन लगातार बारिश, बर्फ़बारी हुई. गढ़वाल में तो यह 8 तारीख को ही थम गई थी लेकिन गुरुवार को भी प्रदेश में 30 से अधिक प्रमुख मोटर मार्ग बंद पडे थे. सबसे अधिक दिक्कत बर्फ़बारी के साथ ही सुबह और शाम पड़ रहा पाला बना. घुमावदार सड़कों, घाटियों में ये पाला सड़कों पर जम जाने के कारण जानलेवा साबित हो रहा है. कई इलाकों में प्रशासन के पास पर्याप्त मशीनरी ही नहीं है कि बर्फ़ को काटकर सड़क खोली जा सके.

उत्तराखंड के ओली, चोपता, मसूरी, धनॉल्टी, चकरौता, हर्षिल, नैनीताल दर्जनों ऐसे स्थान हैं जहां इन दिनों नज़ारा जन्नत सा हो रखा है और इनके दीदार करने पर्यटक जाना चाहते हैं लेकिन जाएं कैसे? सड़के बंद हैं. मसूरी में पार्किंग की समस्या के कारण अधिकतर टूरिस्ट यहां जाने से बचते हैं. जो जाते भी हैं जाम और पार्किंग के झंझट मज़ा किरकिरा कर देते हैं. मसूरी पहुंचे पर्यटक विनायक सिद्ध ने न्यूज़ 18 से कहा कि जो समय होता है वह तो ट्रैफिक से जूझते और पार्किंग खोजते हुए ही जाया हो जाता है. ऐसे में आदमी परिवार के साथ घूमे तो कहां?

मसूरी से चंद किमी आगे मसूरी-सुवाखोली मार्ग पर पिछले हफ़्ते सैकड़ों गाड़ियां बर्फ़बारी के कारण फंस गई. पाले से फिसलन इतनी ज़्यादा थी कि गाड़ियां आड़ी-तिरछी हो गई थीं. पर्यटक और स्थानीय यात्री रात भर जंगल में अपनी गाड़ियों में फंसे रहे लेकिन कोई खास मदद उन तक नहीं पहुंच पाई. 20 घंटे से भी अधिक समय बाद मौसम साफ़ होने पर दूसरे दिन गाड़ियों को निकाला जा सका. प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि जैसे-जैसे हालात बनते जाएंगे भविष्य में उनसे निपटने के उपाय भी किए जाएंगे. वह इस बर्फ़बारी को स्थानीय लोगों, फ़सलों के लिहाज से बेहतर बता रहे हैं लेकिन उनके बयानों से लगता नहीं कि वह विंटर टूरिज्म को लेकर संजीदा हैं.

शानदार बर्फ़बारी से बहुत खूबसूरत दिख रही उत्तराखंड की वादियों को देखने के लिए टूरिस्ट लालायित हैं लेकिन सिस्टम की सुस्ती ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया है. ऐसा नहीं है कि बर्फ़बारी पहली बार हो रही है, ये दुश्वारियां भी पहली बार नहीं है लेकिन ताज्जुब इस बात का है कि 19 साल में हम ऐसा ठोस सिस्टम डेवलप नहीं कर पाए कि विपरीत मौसम में भी लाइफ लाइन कहीं जाने वाली सड़के बाधित न हों. हालत यह है कि उत्तरकाशी, चमोली, पिथैारागढ़ जैसे क्षेत्रों में सैकडों गांव बर्फ़बारी के कारण अलग-थलग पड़ गए हैं. लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं. इन क्षेत्रों में नेट कनेक्टिविटी तो पहले भी न के बराबर थी लेकिन बर्फ़बारी के बाद बिजली भी गुल हो गई.

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