एकादशी स्पेशल। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार हर साल आने वाली प्रत्येक एकादशी को महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी का हमारे दैनिक जीवन में अलग ही महत्व होता है। पंचाग के अनुसार कल यानि 11 दिसंबर को उत्पन्ना एकादशी है। हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी को बहुत ही विशेष माना गया है. मार्गशीर्ष मास में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली उत्पन्ना एकादशी सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने वाली मानी गई है। वहीं इस दिन विधि पूर्वक व्रत और पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है। उत्पन्ना एकादशी के दिन ही एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इसी एकादशी से साल भर के एकादशी व्रत की शुरुआत की जाती है। इसके साथ ही उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत रखकर उनकी पूजा की जाती है।
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व-
बता दें कि पंचाग के अनुसार उत्पन्ना एकादशी का शुभ मुहूर्त 11 दिसंबर को सुबह सुबह 5 बजकर 15 मिनट से सुबह 6 बजकर 5 मिनट तक है। इसके साथ ही शाम को पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 43 मिनट से शाम 7 बजकर 3 मिनट तक है। वहीं 12 दिसंबर को पारण का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 58 मिनट से सुबह 7 बजकर 2 मिनट तक है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। अधिक मास की समाप्ति के बाद भगवान विष्णु पृथ्वी की पुन: बागडोर संभाल लेते हैं। मार्गशीर्ष यानि अगहन मास भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय मास माना गया है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है। एकादशी पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार एकादशी एक देवी थीं, जिनका जन्म भगवान विष्णु के आर्शीवाद से हुआ था। एकादशी के दिन प्रकट होने के कारण ही यह दिन उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। पंचांग के अनुसार उत्पन्ना एकादशी 11 दिसंबर को है। इस दिन शुक्रवार है, शुक्रवार होने के कारण इसका महत्व बढ़ जाता है। विशेष बात ये है कि इसी दिन शुक्र का राशि परिवर्तन होने जा रहा है।
एकादशी व्रत और पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु के लिए व्रत रखकर उनकी पूजा की जाती है। एकादशी तिथि पर प्रात: काल उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें। इस दिन शाम को भी भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। शाम की पूजा में मा लक्ष्मी जी की भी पूजा करें और मुख्य दरवाजे पर घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से लक्ष्मी जी का भी आर्शीवाद प्राप्त होता है। इस दिन दान का भी विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन जरूरतमंदों को दान देना चाहिए। यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है, निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत। सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए। अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए। दिन की शुरुआत भगवान विष्णु को अर्घ्य देकर करें। अर्घ्य केवल हल्दी मिले हुए जल से ही दें। रोली या दूध का प्रयोग न करें। इस व्रत में दशमी को रात्री में भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी को प्रातः काल श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है।