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फतेहपुर का ऐसा गांव, जो 107 साल से सड़क-खड़ंजे तक को तरस रहा

फतेहपुर का ऐसा गांव, जो 107 साल से सड़क-खड़ंजे को तरस रहा

फतेहपुर: तमाम विकास और दावों के बीच फतेहपुर जिले में कुछ ऐसे मार्ग हैं, जहां मौके पर न तो एंबुलेंस पहुंच सकती है, न डायल 112 और न ही फायरब्रिगेड के वाहन। बारिश में तो यहां के हालात ऐसे हो जाते हैं कि पैदल निकलना भी मुश्किल हो जाता है। इन सबके बीच किसी तरह यहां के तमाम लोग अपना जीवन जीने को मजबूर हैं। मूलभूत सुविधाएं तक न मिलने से लोगों में गहरी नाराजगी भी और गुस्सा भी है।

सीर मजरा की बदहाली की कहानी

जिले के 13 विकास खंडों में एक असोथर विकासखंड क्षेत्र में ऐसे कई मजरे और पुरवा हैं, जहां पर चारों ओर बदहाली ही बदहाली है। इनमें भी कुछ ऐसे हैं, जहां आजादी के पहले और स्वतंत्रता के बाद भी सड़क, नाली, खड़ंजा तक नहीं लगा। इन्हीं में एक है सीर मजरा। ब्लॉक मुख्यालय से करीब पांच से सात किलोमीटर दूर यह क्षेत्र बाकी दुनिया से कटा है। बारिश के समय में यह क्षेत्र दलदल और कीचड़ से भर जाता है। जहां किसी वाहन का जाना तो असंभव ही है साथ ही पैदल निकलना भी युद्ध जीतने के बराबर है।

इसी के आसपास बरगदी, रानी पिपरी, राम राज का डेरा, पासिन डेरा भी हैं। हालांकि, कुछ स्थानों पर खड़ंजा जरूर लगा है लेकिन वह भी बुरी तरह से बदहाल है। मार्ग को एक-दूसरे से जोड़ने वाली पुलिया भी बीच से टूटकर ध्वस्त हैं। ऐसे में बारिश के दौरान यहां पैदल निकलना जान जोखिम में लेने के बराबर है।

बदहाली को लेकर कोई नहीं है गंभीर

यहां के रहने वाले केशव ने बताया कि, मामले को लेकर जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों में गंभीरता नहीं है, जिसका खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ रहा है। वहीं, 80 साल के होरीलाल ने बताया कि उनकी दो पीढ़ी यहां पर रह चुकी हैं। तीसरी पीढ़ी से वह हैं। साथ ही उनके बच्चे और नाती भी हैं। करीब 107 साल पहले हमारे पूर्वज यहां आकर रहने लगे थे। तब से लेकर आज तक कोई विकास नहीं हुआ।

फतेहपुर का ऐसा गांव, जो 107 साल से सड़क-खड़ंजे को तरस रहा

केशव ने बताया कि, 28 अप्रैल 2018 को यहां पर भीषण आग लगी थी। मौके पर पहुंचने के लिए कहीं से मार्ग न होने के कारण फायर टेंडर कई किलोमीटर दूर ही खड़े रह गए। पूरा प्रशासनिक अमला हमारे घरों को जलते हुए देख रहा था। देखते ही देखते सब कुछ जलकर राख हो गया, लेकिन इसके बाद भी किसी ने कोई सीख नहीं ली और हालात जस के तस बने हुए हैं।

कुछ ऐसी है इन गांवों की भौगोलिक स्थिति

पहला मार्ग

असोथर विकासखंड मुख्यालय स्थित मुराइन मोहल्ला से सुजानपुर रजबहा होते हुए बाबातारा, बरगदी और रानी पिपरी, रहिमाली डेरा, पासिन डेरा होते हुए सीर गांव की दूरी लगभग चार से पांच किलोमीटर है।

दूसरा मार्ग

सीर मजरे का दूसरा नजदीकी मार्ग गाजीपुर से विजयीपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित कौंडर गांव के पास है। इसकी दूरी सीर से लगभग सात से आठ किलोमीटर है।

तीसरा मार्ग

मनावां गांव से बर्रा बगहा होते हुए नहर सुजानपुर रजबहे से रानी पिपरी के पास से सीर गांव जाने की दूरी लगभग 11 किलोमीटर है।

चौथा मार्ग

असोथर मुख्यालय से मुराइन मोहल्ला असोथर से कठौता सैंबसी मार्ग के कठौता से पासिन डेरा, रहिमाली का डेरा और रानी पिपरी होते हुए सीर गांव की दूरी लगभग सात किलोमीटर है।

यह सभी मरजे और डेरा मिलाकर करीब 500 या इससे अधिक आबादी वाले हैं। यदि इन सभी मजरों और गांवों को जोड़कर एक कर दिया जाए तो स्थानीय लोगों के विकास के द्वार भी खुलेंगे और एंबुलेंस जैसी आपात सेवाएं भी मौके तक पहुंचेंगी। भौगोलिक स्थिति को देखते हुए पहला और चौथा मार्ग सबसे बेहतर रहेगा क्योंकि कम दूरी के साथ ही कई मजरों को एक साथ जोड़ने में आसानी होगी। अब देखने वाली बात होगी कि कब यहां के लोगों को उनका अधिकार मिल पाता है।

पानी पीने का एकमात्र साधन कुंआ

यहां के लोगों ने बताया कि पानी पीने के लिए उनके पास एकमात्र सहारा कुआं है। बारिश के समय में इसका पानी मटमैला और गंदा हो जाता है, लेकिन और कोई विकल्प न होने के कारण मजबूरी में इसी पानी को पीना पड़ता है। एक सरकारी हैंडपंप लगा था, जो पिछले तीन साल से खराब पड़ा है और तब से लेकर आज तक न रिपेयरिंग हुई न हम लोगों के लिए पानी की और कोई व्यवस्था हुई।

फतेहपुर का ऐसा गांव, जो 107 साल से सड़क-खड़ंजे को तरस रहा

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