UP Election Special || राजनीति में कोई भी काम बिना स्वार्थ की नहीं होता यानी किसी भी योजना व प्लान के पीछे जरूर फायदा होता है। कुछ ऐसा ही राजनीतिक समीकरण उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से साफ दिखाई दे रहा है। जहां भाजपा की ओर से प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उतारने का फैसला लिया गया है। हालांकि इससे पहले सीएम योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे।
भाजपा का यह फैसला राजनीतिक पासे से कम नहीं है। जहां भाजपा की जीत पहले से ही निर्धारित हैं। जानकारों के मुताबिक सीएम योगी का गोरखपुर सदन से चुनाव लड़ना भाजपा के लिए काफी फायदेमंद होगा। क्योंकि यहां से सीएम योगी गोरखपुर-बस्ती मंडल की 41 सीटों पर अकेले ही नजर रखेंगे। आपको बता दें अभी तक इन 41 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है, ऐसे में 2022 के चुनावों में भी इन सीटों पर भगवा रंग का कब्जा बना रहे। ऐसे में सीएम योगी की उम्मीदवारी इसी कवायद की एक कड़ी है।
33 साल से गोरखपुर सदर सीट पर भाजपा का कब्जा
सीएम योगी आदित्यनाथ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ी जा रहें है। हालांकि 1998 से 2017 तक गोरखपुर संसदीय सीट से योगी आदित्यनाथ हमेशा जीत हासिल की है। ऐसे में गोरखपुर सीट की हर विधानसभा, गली-मोहल्ले एवं व्यक्तिगत रूप से सीएम योगी की खास पकड़ है। ऐसे में सीएम योगी की इस सीट से उम्मीदवारी कोई अचरज की बात नहीं। सीएम योगी की राजनीति से सभी लोग अच्छी तरीके से वाकिफ है। कि योगी कैसे बिस्तर बिछाने और उसे अमलीजामा पहनाने में महारथी है।
योगी के आगे नहीं चलता जातीय समीकरण
उत्तर भारत में चुनाव के दौरान जातीय समीकरण काफी खास भूमिका निभाता नजर आता है। जहां सभी राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर केंद्रित करने के लिए जातीय समीकरण का सहारा लेती हैं। लेकिन सीएम योगी का मानना है की उनके चुनावी मैदान में उतरने के साथ ही सभी जातीय समीकरण विफल हो जाते हैं।
गोरखपुर सदर सीट में जातीय समीकरण
गोरखपुर सदर सीट में मौजूदा समय में कुल 4,53,662 मतदाता है। जिनमें से 2,43,014 पुरुष और 2,10,574 महिलाएं है। वही इस सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां 45 हजार कायस्थ मतदाता है। जबकि 60 हजार ब्राह्मण, 15 हजार क्षत्रिय, 30 हजार मुस्लिम, 50 हजार वैश्य, 35 हजारनिषाद, 20 हजार दलित और 15 हजार यादव मतदाता है।
गोरखपुर सदर सीट का इतिहास
उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटें है। जिनमें से गोरखपुर सदर विधानसभा 322 स्थान पर है। 1950 जब देश में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे। तब गोरखपुर सदर सीट से कांग्रेस उम्मीदवार इस्तिफा हुसैन पहली बार विधायक बनें। 1962 में कांग्रेस उम्मीदवार नेमतुल्लाह अंसारी इस सीट से विधायक बने। 1967 भारतीय जनसंघ पार्टी के उदय प्रताप दुबे इस सीट चुने गए। फिर 2 साल बाद 1969 में जनसंघ पार्टी के राम लाल भाई और 1974 में वरिष्ठ अधिवक्ता अवधेश कुमार श्रीवास्तव विधायक चुने गए। लगातार तीन बार जनसंघ पार्टी के उम्मीदवार विधायक बने। इसके बाद एक बार फिर से कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और 1985 में कांग्रेस के सुनील शास्त्री विधायक बने। 1989 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा के शिव प्रताप शुक्ला ने कांग्रेस उम्मीदवार को मात दी और विजय हासिल कर ली। और तब से इस सीट पर भाजपा का कब्जा बना हुआ है।
लेकिन इसी बीच 2002 में योगी भाजपा से रूठ गए। योगी आदित्यनाथ लगातार चार बार विधायक रहे शिव प्रताप शुक्ला को टिकट देने का विरोध कर रहे थे लेकिन भाजपा ने इस बात को नजरअंदाज किया।
योगी आदित्यनाथ ने अपने चुनाव संचालक डॉ राधामोहन दास अग्रवाल को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर स्पीड से चुनावी मैदान में उतार दिया। योगी के इस उम्मीदवार ने भाजपा उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला को मात दे दी। और राधामोहन विधायक बन गए। इसके बाद क्या था भाजपा को योगी के सामने झुकना पड़ा। और राधा मोहन ने भाजपा ज्वाइन कर ली और वह लगातार इस सीट से चार बार विधायक रहे।