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उत्तराखंड आपदा: 202 लोग अब भी लापता,18 शव बरामद, राहत व बचाव कार्य जारी

उत्तराखंड की आपदा उत्तराखंड आपदा: 202 लोग अब भी लापता,18 शव बरामद, राहत व बचाव कार्य जारी

देहरादून। चमोली के रैणी इलाके में ग्लेशियर टूटने के बाद आए सैलाब में अब तक 202 लोगों के लापता होने की सूचना है। राहत व बचाव टीमों ने 18 शव बरामद कर लिए हैं। गायब हुए अधिकांश लोग तपोवन पावर प्रोजेक्ट से जुड़े हैं। इनमें उत्तराखंड के अलावा दूसरे प्रदेशों के लोग भी शामिल हैं।
उत्तराखंड आपदा
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से आस-पास के इलाकों में काफी तबाही हुई है। ग्लेशियर टूटने के चलते अलकनंदा और धौली गंगा उफान पर हैं। ऋषिगंगा प्रोजेक्ट की सुरंग में फंसे लोगों को निकालने का अभियान रविवार देर रात नदी का जल स्तर बढ़ने के कारण रोकना पड़ा था, जो सोमवार की सुबह फिर शुरू हो गया। करीब ढाई सौ मीटर इस सुरंग में अब भी 30 से अधिक लोगों के फंसे होने की संभावना है।

ऋषिगंगा पर स्थित पुल सीमावर्ती क्षेत्र मलारी को जोड़ता है, लेकिन इसके टूटने से फिलहाल यह क्षेत्र सड़क संपर्क मार्ग से अलग हो गया है। चार अन्य झूला पुल भी बह गए। इसकी वजह से आसपास के गांवों का संपर्क भी टूट गया है। आपदा की वजह से ऋषिगंगा व धौलीगंगा के 17 गांवों का जिले से संपर्क पूरी तरह कट गया है।

चमोली में हुए हादसे में तपोवन परियोजना में सबसे ज्यादा लोग चपेट में आए हैं। ऋषिगंगा, धौली, के संगम से तपोवन प्रोजेक्ट स्थल करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर है। सैलाब को यहां पहुंचने में करीब आधा घंटा लगा। इस दौरान 26 मजूदर और कर्मचारी परियोजना की सुरंगों में और 142 मजदूर व कर्मचारी साइटों में काम कर रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इनमें से ज्यादातर लोग नदी में आए सैलाब का शिकार हो गए। रेस्क्यू टीमों ने देर शाम तक तपोवन में सुरंगों में फंसे लोगों में 25 को सुरक्षित निकाल लिया। जबकि दूसरी सुरंग में फंसे लोगों की तलाश जारी है।
निशंक पहुंचे तपोपन
तपोवन और रैणी के दौरे पर पहुंचे रमेश पोखरियाल
केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार सुबह तपोवन व रैणी गांव  का दौरा किया। इस दौरान वह प्रभावित परिवारों के परिजनों से मिले और उनको ढांढस बधाते हुए हर संभव मदद पहुंचाने का भरोसा दिलाया। उन्होंने जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया को निर्देश दिए हैं कि राहत व बचाव कार्य में किसी भी प्रकार से कोई ढिलाई न हो। भरोसा दिया कि केंद्र की ओर से हर संभव मदद  दी जाएगी। कहा कि आपदा ग्रस्त इलाकों में फंसे लोगों को रेस्कयू करना प्राथमिकता है।

उत्तराखंड में इससे पहले भी आ चुकी हैं आपदाएं
उत्तरकाशी का भयानक भूकंप
1991 में उत्तराखंड में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था। इससे पूरे इलाके में कई दिन तक तबाही मची रही। इस आपदा में 800 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग बेघर हो गए थे।

आधी रात को गुम हो गया था पिथौरागढ़ का मालपा गांव
1998 में पिथौरागढ़ का गांव मालपा भूस्खलन से रातों रात गायब हो गया था। इस हादसे में 55 कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 255 लोगों की मोत हुई। भूस्खलन के मलबे से शारदा नदी का प्रवाह बाधित हो गया था। जिससे कृत्रिम झील बन गई थी। बाद में इसे ठीक किया गया था।

1999 में हिला था पूरा चमोली जिला
1999 में चमोली जिला भूकंप से हिल गया था। यहां आए जबरदस्त भूकंप में 125 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी जबकि हजारों लोग बेघर हो गए थे। इस भूकंप से रुद्रप्रयाग में भी जबरदस्त नुकसान हुआ। कई जगह पहाड़ों में दरार आने के कारण हाइवे लंबे समय तक बंद रहे।

केदारनाथ आपदा
2013 के जून में उत्तराखंड में सबसे भीषण आपदा आई। केदारनाथ से उमड़े सैलाब ने उत्तराखंड के बड़े इलाके को तबाह कर दिया। राज्य में कई दिन तक लगातार बारिश होने के कारण सभी नदियां उफन गईं जिससे जगह-जगह भीषण नुकसान हुआ।राज्य सरकार के आंकलन के मुताबिक, माना जाता है कि 5,700 से अधिक लोग इस आपदा में जान गंवा बैठे थे। सड़कों एवं पुलों के ध्वस्त हो जाने के कारण चार धाम को जाने वाली घाटियों में तीन लाख से अधिक लोग फंस गए थे।

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