नई दिल्ली। त्रिपुरा में चुनावी तैयारियां जोरो पर हैं। जहां एक तरफ त्रिपुरा में पिछले 25 वर्षों से वाम मोर्चा की सरकार ने अपनी जड़े मजबूत कर रखी हैं। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी त्रिपुरा में जमीनी स्तर पर लोगों पर अपनी छाप छोड़ने में लगी है। लेकिन सही मायने में देखा जाए तो बीजेपी को इस राज्य में अपनी सत्ता कायम करना किसी इम्तिहान से कम नहीं होगा क्योंकि पिछले 25 वर्षों से जनता के दिल में वाम मोर्चा ने जगह बनाई हुई है। वामदल को जनता के दिल से निकालना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
बता दें, माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा और बीजेपी के बीच इस चुनाव में कड़ी टक्कर हो सकती है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भी इस चुनाव को लेकर अपनी कमर कस ली है। इस चुनाव के लिए टीएमसी ने इंडीजीनस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा (आईएनपीटी) और नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ त्रिपुरा के साथ गठबंधन किया है।वहीं बीजेपी की बात करें तो उसने राज्य की इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठबंधन किया है। पर सवाल यहां ये उठता है कि क्या बीजेपी बीते 25 वर्षों से त्रिपुरा में बनी सीपीएम की सरकरा को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब हो पाएगी।
खैर बीजेपी त्रिपुरा के प्रभारी सुनील देवधर जनता के दिलों में जगह बनाने में ही लगे हैं। कहा जा रहा है कि सुनील देवधर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेहद करीबी हैं और वे पिछले कई दिनों से त्रिपुरा में बीजेपी के लिए जमीनी तैयारियां करने में जुटे हैं और उन्हें खासी कामयाबी भी हासिल हुई है। वहीं अरुण जेटली और अमित शाह भी व्यक्तिगत रूप से इस चुनाव में खास दिलचस्पी ले रहे हैं। बीते रविवार को अरुण जेटली ने बीजेपी का विजन डॉक्यूमेंट जारी कर दिया है। वहीं अमित शाह भी त्रिपुरा में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं।
लेकिन ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा की क्या बीजेपी 25 वर्षों तक सत्ता में बनी हुई सीपीएम की सरकार को बेदखल करने में कामयाब हो पाएगी भी या नहीं। बता दें, त्रिपुरा विधानसभा में कुल 60 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं जिनमें से 20 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं और 10 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। त्रिपुरा में 18 फरवरी को वोट डाले जाएंगे और 3 मार्च को इसके नतीजे आएंगे।