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क्या आपने किया कृष्‍ण के भिन्‍न स्‍वरूप के दर्शन- जगन्‍नाथ मंदिर

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नई दिल्ली। भारत में ऐसे बहुत से तार्थ स्थल हैं जहां हर रोज लाखों श्रध्दालों दर्शन करने आते हैं। हर एक तीर्थस्थल की अपनी एक अलग मान्यता हैं। आज आपको बताएंगे  ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित जगन्‍नाथ मंदिर के बारें में कि क्यो आपको जगन्‍नाथ मंदिर के दर्शन करने जाना चाहिए और क्या हैं इस जगन्‍नाथ मंदिर का मान्यता जिसकी वजह से हर रोज लाखों लोग वहं पहुंचते हैं।

जगन्‍नाथ मंदिर ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित हैं। जगन्नाथ शब्द का अर्थ हैं जगत का स्वामी।जगन्नाथ  के नाम पर बसी नगरी गन्नाथपुरी या पुरी के नाम से भी जानी जाती हैं। जगननाथ मंदिर को हिन्दुओं के चार धामों में से एक माना जाता है। यह एक वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है।जगन्‍नाथ मंदिर में हर वर्ष रथ यात्रा उत्सव होता है जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।

जगन्‍नाथ मंदिर में तीन मुख्य देवताओं की मूर्तियां है, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा  हैं। इन तीनों ही मूर्तियों को भव्य और सुसज्जित  करके रथों में विराजमान करके इस हर वर्ष  होने वाले रथ यात्रा महोत्सव में निकाला जाता हैं।

भगवान के प्रतीक

जगन्‍नाथ मंदिर के शिखर पर चक्र और ध्वज स्थित हैं जो चक्र जगन्‍नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित हैं उसे सुदर्शन चक्र का प्रतीक माना जाता हैं। जबकि लाल ध्वज इस बात की प्रतीक हैं कि भगवान जगन्नाथ इस मंदिर के भीतर हैं।

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मंदिर का स्‍थापत्‍य

मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र अर्थात आठ आरों का चक्र बना है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट ऊंचे पत्‍थर के चबूतरे पर बना है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक प्रभाव वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार की छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते चले गये हैं। मुख्य भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसके द्वार पर दो सिंहों की मूर्तियां निर्मित हैं।

क्या हैं मंदिर का इतिहास 

इस मंदिर का इतिहास काफी प्रचीन हैं और कहते हैं कि इस मंदिर को दुबारा बनवाया गया था। क्योकि अफगान जनरल काला पहाड़ की ओर से ओडिशा पर हमला किया था जिसमें मंदिर के कई भाग ध्वंस हो गए थें। ओडिशा पर हमले के कारण जगन्नाथ मंदिर में पूजा को भी रुप दिया गया था । काफी समय बाद रामचंद्र देब के स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर, मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुनर्स्थापना हुई। इस मंदिर से जुड़ी एक परंपरागत कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक अगरु वृक्ष के नीचे मिली थी। यह इतनी चकचौंध करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। मालवा नरेश इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यही मूर्ति दिखाई दी थी। तब उसने कड़ी तपस्या की और भगवान विष्णु ने उसे बताया कि वह पुरी के समुद्र तट पर जाये और उसे एक लकड़ी का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया, उसके बाद स्‍वयं विष्णु जी और विश्वकर्मा बढ़ई और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए, और कहा कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे और राजा या कोई भी उस कमरे के अंदर नहीं आये। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झांका और वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया और राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगी। तब से जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की वही मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गयीं।

जगन्नाथ मंदिर के रहस्य 

जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है.
इसी तरह मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है. इस चक्र को किसी भी दिशा से खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता है कि चक्र का मुंह आपकी तरफ है.
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं. यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है. इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है.
मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आप समुद्र की लहरों से आने वाली आवाज को नहीं सुन सकते. आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देने लगती है. यह अनुभव शाम के समय और भी अलौकि‍क लगता है.
हमने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे और उड़ते देखे हैं. जगन्नाथ मंदिर की यह बात आपको चौंका देगी कि इसके ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता. यहां तक कि हवाई जहाज भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता.
मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता साथ ही मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है.
दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती. एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है. ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा.
आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ. चकित कर देने वाली बात यह है कि पुरी में यह प्रक्रिया उल्टी है.

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