नई दिल्ली। प्राचीन काल से प्रचलित है नागो की पूजा वराह पुराण में इस उत्सव के इतिहास पर प्रकाश डालते हुआ बताया गया कि आज के ही दिन सृष्टिकर्ता ब्रम्हा ने अपने प्रसाद सेशेषनाग को विभूषित किया था शिवजी शर्पों की माला पहनते हैं विष्णु भगवान सेषनाग पर शयन करते हैं इसलिए श्राणव मास की शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी पर्व मनाया जाता है।
महाभारत की कथाओं से पता चलता हैं कि नाग भारत की एक जाति थी जिसकी आर्यों से संघर्ष हुआ करता था आस्तीक ऋृषि ने आर्यों और नागो के बीच उत्पनन करने का बहुत्व प्रयत्न किया वे अपने कार्य में सफल भी हुए दोनों एक दूसरे के प्रेम सूत्र में बंध गए यहां तक की वैवाहिक संबंध भी होने लगा इस प्रकार अंतर्जातीय संघर्ष समाप्त हो गया सर्पभय से मुक्ति के लिए आस्तीक का नाम अब भी लिया जाता है।
नाग पूजा
नागों के प्रति सम्मान के प्रमाण अनेक स्थानों पर प्राप्त हुए हैं दक्षिण भारत में नाग की एक अत्यंत प्राचीन विशाल मूर्ति है अंजता की गुफाओं में भी नागपूजा के चित्र बने हुए है मालाबार मे नागों के लिए कुछ भूमि छोड़ी गई है प्राचीन ग्रथों में नाग लोक का वितरण है प्राचीन काल से ही यूनान और मिस्त्र के मंदिरों में सर्प पाले जाते हैं। चीन की राजधानी बीजिंग में भी एक नाग मंदिर हैँ।