बर्थडे स्पेशल। आज महान गायक मोहम्मद रफी का जन्मदिन है। इस दिन ही 24 दिसंबर 1924 में अमृतसर के एक बेहद छोटे से गांव कोटला सुल्तानपुर में हुआ था। रफी भले ही आज जिंदा न हो, लेकिन उनके चाहने वालों के दिलों में वो आज भी जिंदा है। रफी की आवाज को लोगों द्वारा खूब पसंद किया जाता था। उनकी आवाज का लोगों पर जादू हो जाता था जो एक बार सुन लेता वह उनकी आवाज का दिवाना हो जाता था। अगर मोहम्मद रफी को आवाज की दुनिया का फरिश्ता कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 1942 में रफी को सबसे पहले मौका संगीतकार श्याम सुंदर ने फिल्म ‘गुल बलोच’ में दिया। गाने तो कुछ खास नहीं चले लेकिन उन्होने मुंबई आने का फैसला कर लिया। प्ले बैक सिंगिंग में दुनिया में रफी से बड़ा कोई दूसरा नाम नहीं हुआ है।
रफी को बड़ी कामयाबी फिल्म ‘बैजू बावरा’ से मिली-
बता दें कि रफी की गायकी का दौर 40 के दशक से शुरू होता है और 50,60,70 और 80 के दशक तक यह आवाज बॉलीवुड की आवाज बनी रहती है। ‘मैं जट यमला पगला दिवाना’ गीत सुने ‘अब वतन आजाद, अब गुलशन न उजड़े’ गीत को सुनेंगे तो आपको रफी की आवाज की विविधता समझ में आएगी। उनकी गायकी की प्रतिभा को सबसे पहले संगीतकार नौशाद ने पहचाना। नौशाद उनकी गायकी से बेहद प्रभावित थे और उन्होंने उनकी क्षमताओं को भांप लिया था। फिल्म ‘अनमोल घड़ी’ से नौशाद ने मोहम्मद रफी को पहला ब्रेक दिया। लेकिन फिल्म ‘मेला’ के गीत ‘ये जिंदगी के मेले, दुनिया में कम न होंगे अफसोस हम न होंगे,’ से लोगों ने रफी की पुरकशिश आवाज को महसूस किया। यहा गाना काफी मशहूर हुआ। लेकिन उन्हें बड़ी कामयाबी फिल्म ‘बैजू बावरा’ से मिली। यहीं से उनकी सफलता का कारवां शुरू हुआ। इसके बाद रफी ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा। नौशाद ने एक बार उनकी आवाज की तारीफ करते हुए कहा था कि मोहम्मद रफी की आवाज में हिंदुस्तान का दिल धड़कता है। रफी की आवाज दुनिया के हर कोने में सुनाई देती है। रफी जितने अच्छे फनकार थे उतने ही अच्छे इंसान भी थे।
एक फकीर से मिली थी मोहम्मद रफी को प्रेरणा-
मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 में अमृतसर के एक बेहद छोटे से गांव कोटला सुल्तानपुर में हुआ था। इस गांव में एक सूफी फकीर आया करते थे। वह गीत गाते थे। इस फकीर का गाना सुनते सुनते रफी बहुत दूर तक चले जाया करते थे। मोहम्मद रफी को गाने की प्रेरणा इस फकीर से ही मिली।