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दिव्यांगता दूर करने वाला मंदिर ! #Kanyakumari के तिरुपतिसारंग में बाल कृष्णा भगवान

12122222 2 दिव्यांगता दूर करने वाला मंदिर ! #Kanyakumari के तिरुपतिसारंग में बाल कृष्णा भगवान

चैतन्य महाप्रभु का नाम पूरी दुनिया में बेहद मशहूर है। वृंदावन में रस जगाने वाले चैतन्य महाप्रभु की काहनी हर किसी ने सुनी है। चैतन्य महाप्रभु और वृंदावन के राधारमण मंदिर की कहानी किसी से नहीं छिपी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वृंदावन के राधारमण मंदिर जैसी दिव्यता ही तमिलनाड़ु के श्री कृष्णा चैतन्य मडाम मंदिर में है। जिसके पीछे रहस्यों के साथ-साथ चैतन्य मडाम की भक्ति, तप की शक्ति और महाप्रभु चैतन्य का वो कनेक्शन है जिसे कोई नहीं जानता…आइए आज आपको बताते हैं श्री कृष्णा चैतन्य मडाम मंदिर की रहस्यकथा

कन्याकुमारी जिले में है मंदिर

देश का अंतिम छोर जहां से समंदर की गहराईयां शुरू होती है। कन्याकुमारी जिले में दशकों पहले चैतन्य मडाम का ये मंदिर स्थापित किया गया था। तमिलनाड़ु राज्य के कन्याकुमारी जिले के तिरुपति सारंग में इस मंदिर को स्थापित किया गया था। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण बाल रूप में मौजूद हैं। इस मंदिर को इलाके में मशहूर लक्ष्मी नारायण पिल्लई के परिवार ने बनवाया था। चैतन्य मडाम स्वामी के कहने पर बरसों से ये परिवार कृष्ण के इस बाल रूप की पूजा कर रहा है।

मंदिर में मौजूद मूर्तियों में तपस्या की शक्ति

मंदिर में मौजूद मूर्तियों को यहां के लोग जीवंत मानते हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में अपने मन की मुराद लेकर आते हैं। मान्यता है कि दर्शन मात्र से ही भक्तों के दुख दूर हो जाते हैं। मंदिर में मौजूद मूर्तियों को चैतन्य मडाम की भक्ति और तपस्या की शक्ति बताई जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि चैतन्य मडाम इन मूर्तियों को यहां लेकर आए थे। अपनी तपस्या से लक्ष्मी नारायण पिल्लई के परिवार के एक सदस्य को नया जीवन दिया था।

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तपस्या से दिव्यांगता को दूर किया था

चैतन्य मडाम को लेकर एक रहस्य यहां हमेशा चर्चा में रहती है। लोग बताते हैं कि मंदिर को स्थापित करवाने वाले लक्ष्मीनारायण पिल्लई के परिवार में वेंकट चेलम नाम के एक सदस्य थे। वेंकट जन्म से ही दिव्यांग थे। वो कभी खड़े नहीं हो पाते थे। फिर एक दिन चैतन्य मडाम स्वामी का तिरुपति सारंग आना हुआ। वेंकट की हालत को देखकर स्वामी जी ने उसके लिए तपस्या की। 40 दिनों की कड़ी तपस्या के बाद स्वामी जी ने वेंकट को उसके पैरों पर खड़ा कर दिया था।

तिरुपति सारंग में बाल कृष्ण की स्थापना

वेंकट के ठीक होने के बाद चैतन्य मडाम ने श्रीकृष्ण के बाल रूप की मूर्तियों को यहां स्थापित करवाया था। लोग बताते हैं कि इस परिवार से स्वामी जी ने श्रीकृष्ण के बाल रूप की सेवा करने का प्रण लिया था। तब से वेंकट इस मठ में रहते हैं और हमेशा भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन रहते हैं। इतना ही नहीं कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम रखने वाले वेंकट ने सन्यास धारण किया और कभी शादी भी नहीं की।

चैतन्य महाप्रभु भक्त थे चैतन्य मडाम

चैतन्य मडाम को वृंदावन में रस जगाने वाले चैतन्य महाप्रभु का अनुयायी बताया जाता है। कहा जाता है कि चैतन्य मडाम महाप्रभु के परम भक्तों में से एक थे। यही वजह है कि तमिलनाड़ु के इस मंदिर में वृंदावन के राधारमण मंदिर जैसी दिव्यता को महसूस किया जा सकता है।

बालकृष्ण का श्रंगार और अभिषेक

मंदिर में भगवान श्री कृष्ण बाल रूप में मौजूद हैं। यहां हर दिन की शुरूआत बालकृष्ण के अभिषेक और श्रंगार के साथ होती है। चंदन और दूध के साथ अभिषेक किया जाता है। गुड़हल के फूलों से मूर्ति को सजाया जाता है। वहीं सफेद और पीले फूलों की माला भगवान को पहनाई जाती है।

बाल कृष्ण का भोग

श्रंगार के बाद बाल कृष्ण का मनमोहक रूप दिखाई देता है। फूलों का श्रंगार हर आंखों को सुकून देता है। बाल कृष्ण को केले के पत्तों पर पके हुए केलों का भोग लगाया जाता है। साथ में पके हुए नारियल भी चढ़ाए जाते हैं। इसके साथ ही रहस्यों के साथ बालकृष्ण की मौजूदगी इस मंदिर की दिव्यता को बढ़ाती हैं। यही वजह है कि दूर-दूर से इस मंदिर में लोग अपनी मुराद लेकर आते हैं। बालकृष्ण को अपने श्रद्धा सुमन अर्पण करते हैं और अपनी भरी हुई झोली लोकर जाते हैं।

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