लखनऊ: चैत्र का महीना शुरू होते ही मां दुर्गा के जयकारे का दिन भी करीब आने लगा है। इस बार नवरात्रि का त्यौहार 13 अप्रैल को शुरू हो रहा है। जो 21 अप्रैल को जाकर समाप्त होगा। नवरात्रि का त्यौहार हिदू धर्म में बेहद खास माना जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
किस दिन कौन सी देवी की होगी पूजा
13 अप्रैल 2021- शैलपुत्री
14 अप्रैल 2021- ब्रह्मचारिणी
15 अप्रैल 2021- चंद्रघंटा
16 अप्रैल 2021- कूष्मांडा
17 अप्रैल 2021- स्कंदमाता
18 अप्रैल 2021- कात्यायनी
19 अप्रैल 2021- कालरात्रि
20 अप्रैल 2021- महागौरी
21 अप्रैल 2021- सिद्धिदात्री
माता शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन हम माता शैलपुत्री की पूजा करते हैं। कलश स्थापना के बाद हम माता शैलपुत्री को पूजते हैं। माता शैलपुत्री हिमालय की पुत्री होने के कारण शैलपुत्री कहलाती है।
माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और इनके दाएं हाथ में त्रिशूल जबकि बाएं हाथ में कमल है। माता का रूप मनमोहक होने के कारण भक्त भावविभोर हो जाते हैं।
माता बृह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन माता मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता बृह्मचारिणी का अर्थ है तप को धारण करने वाली। इनके एक हाथ में कमंडल जबकि दूसरे हाथ में माला है।
इनका रूप भी अतयंत ही आनंदकारी है। इनके इस स्वरूप की पूजा करने से अत्यंत लाभ होता है।
माता चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। माता चंद्रघंटा अपने माथे पर अर्धचंद्र धारण करती हैं। इसी के कारण इनका नां चंद्रघंटा पड़ा है।
इनके घंटे से जो ध्वनि निकलती है उससे बुरी शक्तियां दूर भाग जाती है। माता सिंह पर सवारी करती हैं और इनका रूप भक्तों को माता दुर्गा की याद दिलाता है। इनका स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है। जो अत्यंत ही मनोहारी है।
माता कूष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन माता कूष्मांडा की आराधना की जाती है। माता कूष्मांडा का रंग अत्यंत ही शांतिदायक है। कहते हैं कि जब सृष्टि में अंधकार था तब माता ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी।
ब्रह्मांड की रचना करने के कारण ही इनका नाम कूष्मांडा पड़ा था। माता के इस स्वरूप की पूजा भी अत्यंत ही लाभकारी है। माता कूष्मांडा दयालु हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन मां दुर्गा के मनोहारी स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता परम सुखों को देने वाली माता हैं। स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं।
माता ने एक हाथ से स्कंद यानि भगवान कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है। और माता के दो हाथों में कमल पुष्प है। वहीं एक हाथ से माता अभय मुद्रा में हैं। स्कंदमाता बब्बर शेर की सवारी करती हैं।
माता कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा का विधान है। माता कात्यायनी ने ऋषि कात्यायन के यहां कन्या के रूप में जन्म लिया था। माता के चार हाथ हैं।
इनके एक हाथ में कटार है जबकि एक हाथ में कमल का फूल, वहीं दो हाथों से माता आशीर्वाद देने की मुद्रा में हैं। माता कात्यायनी की सवारी भी शेर है। माता कात्यायनी का स्वरूप अतयंत ही आलौकिक है।
माता कालरात्रि
नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की परंपरा है। माता कालरात्रि का रूप अत्यंत ही भयावह है।
लेकिन माता का ये रूप अत्यंत ही कल्याणकारी है और भक्तों की रक्षा करने वाला है। माता के आगमन से घर में बुरी शक्तियों का प्रभाव खत्म हो जाता है। माता का वाहन (गर्दभ) यानि गधा है।
माता महागौरी
नवरात्रि के आंठवें दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है। माता का रूप ममतामई है और माता भक्तो को फल देने वाली हैं।
महागौरी के पूजन से हमें समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। चुंकि माता का रंग गोरा है इसलिए इन्हें महागौरी कहा गया है। माता महागौरी को मां अन्नपूर्णा भी कहा जाता है।
माता सिद्धिदात्री
नवरात्रि के समापन के दिन यानि नवें दिन माता सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। माता सिद्धिदात्री समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाली हैं।
माता के इस रूप के पूजन से हमें असीम अनुकंपा प्राप्त होती है। इनकी पूजा से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। माता सिद्धिदात्री ने ही भगवान शिव को सिद्धियां दी थीं। इन्हीं के एक रूप अर्धनारीश्वर की भी पूजा होती है।
साल में पड़ते हैं दो नवरात्र
मान्यता है कि जो भी मां दुर्गा की भक्ति करता है उसके सारे रोग और संकट दूर हो जाते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार नवरात्र का त्यौहार साल में दो बार पड़ता है। जाड़े में शरद ऋतु में पड़ने वाला नवरात्र शारदीय कहलाता है, जबकि गर्मी में बसंत ऋतु में पड़ने वाले नवरात्र को वासंतिक कहते हैं।
कलश की होती है स्थापना
नवरात्रि के दिन घट या कलश की स्थापना की जाती है और घर में अखंड ज्योति जलाई जाती है। जो नवरात्रि के समाप्त होने तक जलती रहती है। सबसे पहले बात करते हैं घट स्थापना की तो इस बार देवी मां के चरणों में कलश की स्थापना 13 अप्रैल को होगी। इसका शुभ मुहूर्त सुबह का होगा।