श्रीनगर। कश्मीर में सोमवार को ईद उल अजहा के मौके पर नमाज पढ़े जाने को स्थानीय मस्जिदों तक सीमित किए जाने के चलते ईद भले ही शांतिपूर्ण ढंग से मनी हो लेकिन इस बार त्योहार की पहले जैसी रौनक नहीं दिखी।
अधिकारियों ने इस दौरान सख्त पाबंदियां लगाई हुईं थी और कस्बों एवं गांवों में सुरक्षा बलों की टुकड़ियां फैली हुई थीं जिससे लोगों की चहलपहल सीमित होने के साथ ही बड़े मैदानों में उनके एकत्र होने पर रोक थी। पुलिस महानिरीक्षक एस पी पाणी ने बताया कि छिटपुट घटनाएं छोड़ कर ईद-उल-अजहा शांतिपूर्ण रहा। साथ ही बताया कि कश्मीर घाटी में गोलीबारी की कोई घटना नहीं हुई।
उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘अलग-अलग मस्जिदों में ईद की नमाज अदा की गई और नमाज के बाद मण्डली शांतिपूर्ण तरीके से रवाना हुई। कानून और व्यवस्था की कुछ छोटी-मोटी स्थानीय घटनाएं हुई हैं, जिन्हें बहुत ही पेशेवर तरीके से संभाला गया है। इन घटनाओं में कुछ एक के घायल होने की जानकारी मिली है।’’
प्रधान सचिव और जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के आधिकारिक प्रवक्ता रोहित कंसल ने कहा कि 90 प्रतिशत स्थानों में ईद मनाई गई। लेकिन घाटी के बड़े हिस्से में सुनसान पड़ी सड़कों के साथ ही लोगों के चेहरों पर भी ईद की कोई चमक नहीं दिखी । सड़कों पर पसरी चुप्पी केवल पुलिस सायरनों और ऊपर मंडराते भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टरों की आवाज से ही टूट रही थी।
मोबाइल या लैंडलाइन के साथ ही इंटरनेट सेवाएं पिछले आठ दिनों से ठप पड़ी हैं जिससे अपने प्रियजनों से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे परिवारों के हाथ बस मायूसी लग रही है। सुबह कश्मीरियों को आंख खुलने के साथ ही लगभग हर कोने पर तैनात सशस्त्र कर्मी ही नजर आए जो उनसे घरों के भीतर रहने को कह रहे थे।
ईदगाह मैदान और हजरतबल दरगाह, टीआरसी मैदान और सैयद साहब मस्जिद जैसी जगहें इस ईद में शांत एवं उदास रहीं। इस बार की ईद केंद्र की उस घोषणा के ठीक एक हफ्ते बाद पड़ी है जिसमें अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को मिला विशेष दर्जा रद्द कर दिया गया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया गया।
अधिकारियों ने कहा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों-फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के लिए इस बार की ईद पिछले कई वर्षों की ईद के मुकाबले खामोशी भरी रही । कभी उनके घरों में समर्थकों, दोस्तों, परिवार के सदस्यों की भीड़ लगी रहती थी।