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दुनिया का तीसरा ध्रुव 50 सालों में खिसका 450 मीटर पीछे, ग्लोबल वार्मिंग से पड़ रहा भारी असर

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नई दिल्ली। आज के दौर में वाहनों और फैक्ट्रीयों से निकलने वाले धुएं के कारण प्रदूषण अधिक मात्रा में हो रहा है। इस प्रदूषण से धरती पर रहने वाले लोगों को ही नहीं बल्कि यहां रहने वाले जीव-जंतु और पर्यावरण पर भी इसका असर देखने को मिलता है। प्रदूषण प्रतिदिन हमारे लिए खतरा बनता जा रहा है। ऐसा ही कुछ अब चीन के पहाड़ों के बीच मौजूद एक ग्लेशियर के पिघलने की खबर सामने आ रही है। इसके पिघलने की वजह से दुनियाभर के वैज्ञानिक चिंतित हैं। इस ग्लेशियर और इसके आसपास के इलाके को दुनिया का तीसरा ध्रुव यानी थर्ड पोल कहा जाता है। ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण की वजह से यहां के ग्लेशियर में इतना परिवर्तन हो रहा है।

लाओहुगोउ नंबर 12 ग्लेशियर बेहद तेजी से पिघल रहा-

बता दें कि इस ग्लेशियर का नाम किलियान है। यहां पर कई ग्लेशियरों का एक समूह है। इनमें से लाओहुगोउ नंबर 12 ग्लेशियर बेहद तेजी से पिघल रहा है। यह चीन के तिब्बत के पठारों पर स्थित है। यह पिछले 50 सालों में 450 मीटर यानी करीब आधा किलोमीटर पीछे चला गया है। तिब्बती पठार के उत्तरपूर्वी किनारे पर 800 KM की पहाड़ी श्रृंखला का सबसे बड़ा ग्लेशियर 1950 के दशक से लगातार पिघल रहा है। ग्लेशियर के इस तरह गायब होने से वैज्ञानिक परेशान हैं। शोधकर्ताओं द्वारा लगातार इसकी निगरानी की जा रही है। लाओहुगोउ नंबर-12 ग्लेशियर 20 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ग्लेशियर की पिछले कुछ वर्षों में निगरानी शुरू की गई। जिसके बाद पाया गया कि ये लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की रफ्तार से पिघल रहा है। मॉनीटरिंग स्टेशन के निदेशक किन जियांग ने बताया कि ग्लेशियर से 13 मीटर यानी करीब 42 फीट मोटी बर्फ की परत गायब हो चुकी है।

किलियान रेंज में 2,684 ग्लेशियरों के लिए ये खतरनाक समय-
किन जियांग ने बताया कि 1950 के दशक के बाद से इस क्षेत्र के तापमान में औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई है। उन्होंने बताया कि किलियान रेंज में 2,684 ग्लेशियरों के लिए ये खतरनाक समय है। उन्होंने बताया कि चीन की अकादमी ऑफ साइंस द्वारा 1956 से 1990 तक के आंकड़ों की बात की जाए तो 1990 से 2010 के बीच ग्लेशियर 50 प्रतिशत की रफ्तार से पिघले हैं। उन्होंने कहा कि जब वे पहली बार 2005 में यहां आए थे, तो ग्लेशियर नदी के झुकाव वाले स्थान के बेहद नजदीक था पर अब ये करीब आधा किलोमीटर पीछे चला गया है। ग्लोबल वार्मिंग से मौसम में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसका बड़ा असर ग्लेशियर पर पड़ रहा है।

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